इन पंक्तियों से भगत जी एकदम संतोषी स्वभाव के व्यक्ति हैं, वह बाजार के आकर्षक जाल से बिल्कुल मुक्त रहते हैं, उनमें निर्लिप्तता का भाव है। उन्हें अपने लिए केवल काला नमक और जीरे की आवश्यकता होती है और वह बाजार से काला नमक और जीरा खरीदने ही जाते हैं। काला नमक और जीरा खरीद कर सीधे वह बाजार से अपने घर आ जाते हैं, इसके अतिरिक्त उन्हें बाजार से कोई मतलब नहीं, इसलिए वह बाजार के आकर्षण में नहीं पड़ते उन्होंने बाजार के प्रति विरक्ति का भाव अपना रखा है।
काला नमक और जीरा उनके रोजगार से जुड़ा हुआ है, इसीलिए वह खरीदते हैं। यहां तक कि उतना अधिक संतोष है कि वह काला नमक जीरा जो चूरन बनाते हैं, उसको बेचकर उनकी दिन की कमाई जब उनकी जरूरत के हिसाब से हो जाती है, उसके बाद जो चूरन बचता है, वह बच्चों में मुफ्त में बांट देते हैं। यानि उन्हें अधिक कमाने का लालच भी नहीं है। उनका यही संतोषी भाव कबीर की इस साखी में भी प्रकट होता है, जिसमें कबीर कहते हैं कि जहाँ पर इच्छा चली गई, तो सारी चिंता भी मिट गई। अब मन बेपरवाह हो गया है। इस मन को अब कुछ नहीं चाहिए, इसलिए अब यह मन खुद को शहंशाह के समान समझ रहा है।
पाठ के बारे में…
यह पाठ जैनेंद्र कुमार द्वारा लिखित एक निबंध है, जिसमें उन्होंने बाजारवाद और उपभोक्तावाद की विवेचना की है। इस निबंध के माध्यम से उनकी गहरी वैचारिकता और सहायक सुलभ लालित्य का प्रभाव देखने को मिलता है। उपभोक्तावाद एवं बाजारवाद पर पर व्यापक चर्चा के परिप्रेक्ष्य में यह पाठ एक महत्वपूर्ण निबंध है। कई दशक पहले लिखा गया जैनेंद्र कुमार का यह निबंध आज भी अपने लिए बाजारवाद एवं उपभोक्तावाद के संदर्भ में पूरी तरह प्रासंगिक है और बाजारवाद की मूल अंतर्वस्तु को समझने के मामले में बेजोड़ है।जैनेंद्र कुमार हिंदी साहित्य के जाने-माने साहित्यकार रहे हैं, जिन्होंने अनेक कहानियां एवं निबंधों की रचना की। उनका जन्म 1905 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में हुआ था।
उनकी प्रमुख रचनाओं में अनाम, परख, स्वामी, सुनीता, त्यागपत्र, कल्याणी, एक रात, दो चिड़िया, फांसी, नीलम देश की राजकन्या, प्रस्तुत प्रश्न, जड़ की बात, पूर्वोदय, साहित्य का श्रेय और प्रेय, सोच-विचार, समय और हम, मुक्तिबोध नामक उपन्यास तथा पाजेब नामक कहानी संग्रह हैं।
उन्हें साहित्य अकादमी तथा भारत भारती पुरस्कार जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा उन्हें भारत सरकार द्वारा द्वारा पद्म भूषण सम्मान भी मिल चुका है। उनका निधन सन 1990 में हुआ।
संदर्भ पाठ :
बाजार दर्शन, लेखक : जैनेंद्र कुमार ( कक्षा – 12, पाठ – 12, हिंदी स्पर्श 2)
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