(क) मन खाली हो
जब मन खाली होता है, तो हम बाजार की चकाचौंध के प्रभाव में आ जाते हैं। तब बाजार जाने पर हमारा तरह-तरह की चीजें खरीदने का मन करता है। हम यदि शर्ट खरीदने गए हैं तो शर्ट के साथ-साथ हम पेंट, जूते, स्वेटर, टोपी, कोट आदि सब कुछ खरीद लाते हैं। जबकि हमारी जरूरत केवल शर्ट की थी। यह हमारे खाली मन पर पड़े बाजारवाद का प्रभाव होता है। इसलिए खाली मन कभी बाजार नहीं जाना चाहिए।
(ख) मन खाली न हो
जब मन खाली ना हो, तब हम बाजार जाते समय केवल वही चीज खरीदते हैं, जिसकी हमें आवश्यकता है। यदि हम बाजार में शर्ट खरीदने गए हैं तो केवल शर्ट खरीदकर तुरंत वापस लौट आते हैं, क्योंकि हमारा मन खाली नहीं है। हमारे मन में और कई विचार उमड़ रहे हैं। हम अपने विचारों में खोये हुए हैं तो हमें केवल अपनी जरुरत की वस्तु खरीदने का ही ध्यान रहता है और हम वह वस्तु खरीदकर वापस लौट आते हैं। इससे हम बाजारवाद के जाल में उलझने से बच जाते हैं।
(ग) मन बंद हो
जब मन बंद हो, तब हम बाजार जाते तो है, लेकिन हमारा कोई भी चीज खरीदने का मन नहीं करता। तब हमारे मन अपनी उलझन में ही व्यस्त होता है और हमें बाजार की कोई चीज आकर्षित नहीं करती, इसलिए हम बाजार तो जाते हैं लेकिन खरीदेत कुछ नही।
(घ) मन में नकार हो
जब मन में नकार हो तब बाजार जाकर हमें हर वस्तु में कमी नजर आती है, हम जो भी खरीदने जाते हैं, उसमें कोई ना कोई कमी नजर आती है। हम दुकानदार से बहस करते हैं और वह वस्तु खरीदते नहीं हैं। तब हम बाजार में जाकर केवल अपना समय व्यर्थ गवांते हैं और कुछ नहीं भी नही खरीदते, भले ही हमें उसकी जरूरत ही क्यों न हो। यदि हम कुछ खरीद भी लें तो भी हमारे मन में ये विचार बना रहता है कि हम ठगे गए या इससे बेहतर खरीद सकते थे।
पाठ के बारे में…
यह पाठ जैनेंद्र कुमार द्वारा लिखित एक निबंध है, जिसमें उन्होंने बाजारवाद और उपभोक्तावाद की विवेचना की है। इस निबंध के माध्यम से उनकी गहरी वैचारिकता और सहायक सुलभ लालित्य का प्रभाव देखने को मिलता है। उपभोक्तावाद एवं बाजारवाद पर पर व्यापक चर्चा के परिप्रेक्ष्य में यह पाठ एक महत्वपूर्ण निबंध है। कई दशक पहले लिखा गया जैनेंद्र कुमार का यह निबंध आज भी अपने लिए बाजारवाद एवं उपभोक्तावाद के संदर्भ में पूरी तरह प्रासंगिक है और बाजारवाद की मूल अंतर्वस्तु को समझने के मामले में बेजोड़ है।जैनेंद्र कुमार हिंदी साहित्य के जाने-माने साहित्यकार रहे हैं, जिन्होंने अनेक कहानियां एवं निबंधों की रचना की। उनका जन्म 1905 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में हुआ था।
उनकी प्रमुख रचनाओं में अनाम, परख, स्वामी, सुनीता, त्यागपत्र, कल्याणी, एक रात, दो चिड़िया, फांसी, नीलम देश की राजकन्या, प्रस्तुत प्रश्न, जड़ की बात, पूर्वोदय, साहित्य का श्रेय और प्रेय, सोच-विचार, समय और हम, मुक्तिबोध नामक उपन्यास तथा पाजेब नामक कहानी संग्रह हैं।
उन्हें साहित्य अकादमी तथा भारत भारती पुरस्कार जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा उन्हें भारत सरकार द्वारा द्वारा पद्म भूषण सम्मान भी मिल चुका है। उनका निधन सन 1990 में हुआ।
संदर्भ पाठ :
बाजार दर्शन, लेखक : जैनेंद्र कुमार ( कक्षा – 12, पाठ – 12, हिंदी स्पर्श 2)
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