(क) जब पैसा शक्ति के परिचायक के रूप में प्रतीत हुआ।
पिछले कई सालों से हमने अक्सर समाचार पत्र में पढ़ा कि एक प्रसिद्ध अभिनेता ने किसी सड़क पर सो रहे व्यक्ति को अपनी कार से कुचल दिया था। अभिनेता पर कई साल मुकदमा भी चला लेकिन वह साफ बच निकला। यह उसके पैसे और शोहरत की पावर थी, जिसके कारण शासन-प्रशासन सब उसके सामने बिछे-बिछे नजर आए। जबकि घटना की वास्तविकता का सबको पता था। यदि उसकी जगह कोई साधारण आदमी होता तो शायद वह इतनी आसानी से नहीं बच पाता।
(ख) जब पैसे की शक्ति काम नहीं आई।
एक बहुत बड़े धन्ना सेठ थे, जिनके पास पैसे की कोई कमी नहीं थी। पैसे से सब कुछ खरीद सकते थे। उनकी बेटे को एक भयंकर बीमारी हो गई। उन्होंने उसके इलाज में खर्च कर दिए, लेकिन वे अपनी बेटे को नहीं बचा पाए। इससे स्पष्ट होता है कि पैसा सब कुछ नहीं दिला सकता। पैसा सर्वशक्तिमान नहीं है।
पाठ के बारे में…
यह पाठ जैनेंद्र कुमार द्वारा लिखित एक निबंध है, जिसमें उन्होंने बाजारवाद और उपभोक्तावाद की विवेचना की है। इस निबंध के माध्यम से उनकी गहरी वैचारिकता और सहायक सुलभ लालित्य का प्रभाव देखने को मिलता है। उपभोक्तावाद एवं बाजारवाद पर पर व्यापक चर्चा के परिप्रेक्ष्य में यह पाठ एक महत्वपूर्ण निबंध है। कई दशक पहले लिखा गया जैनेंद्र कुमार का यह निबंध आज भी अपने लिए बाजारवाद एवं उपभोक्तावाद के संदर्भ में पूरी तरह प्रासंगिक है और बाजारवाद की मूल अंतर्वस्तु को समझने के मामले में बेजोड़ है।जैनेंद्र कुमार हिंदी साहित्य के जाने-माने साहित्यकार रहे हैं, जिन्होंने अनेक कहानियां एवं निबंधों की रचना की। उनका जन्म 1905 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में हुआ था।
उनकी प्रमुख रचनाओं में अनाम, परख, स्वामी, सुनीता, त्यागपत्र, कल्याणी, एक रात, दो चिड़िया, फांसी, नीलम देश की राजकन्या, प्रस्तुत प्रश्न, जड़ की बात, पूर्वोदय, साहित्य का श्रेय और प्रेय, सोच-विचार, समय और हम, मुक्तिबोध नामक उपन्यास तथा पाजेब नामक कहानी संग्रह है।
उन्हें साहित्य अकादमी तथा भारत भारती पुरस्कार जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा उन्हें भारत सरकार द्वारा द्वारा पद्म भूषण सम्मान भी मिल चुका है। उनका निधन सन 1990 में हुआ।
संदर्भ पाठ :
बाजार दर्शन, लेखक : जैनेंद्र कुमार ( कक्षा – 12, पाठ – 12, हिंदी स्पर्श 2)
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