बाज़ार किसी का लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र नहीं देखता; वह देखता है सिर्फ़ उसकी क्रय शक्ति को। इस रूप में वह एक प्रकार से सामाजिक समता की भी रचना कर रहा है। आप इससे कहाँ तक सहमत हैं?

बाजार किसी का लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र नहीं देखता, तो वह देखता है, सिर्फ उसकी क्रय शक्ति को इस कथन से सहमत हुआ जा सकता है, लेकिन इस बात से सहमत नहीं हुआ जा सकता कि बाजार भेदभाव नहीं करता बाजार केवल व्यक्ति की क्रय शक्ति को देखता है। जो व्यक्ति कुछ खरीद सकता है, बाजार उसको वह वस्तु बेचता है। बाजार यह नहीं देखता कि वह व्यक्ति किस लिंग का, किस जाति का, किस धर्म का या किस क्षेत्र का है। यदि व्यक्ति किसी वस्तु का मूल्य चुका रहा है तो बाजार उसे वह वस्तु दे देता है।

लेकिन बाजारवाद यहाँ तक ही सीमित नहीं है। बाजार केवल अमीरों के लिए ही होता है। क्रय शक्ति केवल अमीर और समर्थ लोगों के पास ही होती है। बाजार भले ही लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र नहीं देखता हो लेकिन वह पैसे की पावर जरूर देखना है। जिस व्यक्ति में जितनी अधिक पैसे की पावर है, बाजार उसके लिए समर्पित है।

इसीलिए कोई समान उपयोग वाली वस्तु 10 रुपये में भी आती है और 1000 रुपये में भी आती है। क्योंकि 10 रुपये वाली वस्तु आम व्यक्ति के लिए है और 1000 रुपये वाली वही वस्तु एक अमीर व्यक्ति के लिए है, इसलिए बाजार भले ही लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र नहीं देखता, लेकिन वो पैसे की पावर के आधार पर अमीर गरीब का भेद जरूर देखता है।

पाठ के बारे में…

यह पाठ जैनेंद्र कुमार द्वारा लिखित एक निबंध है, जिसमें उन्होंने बाजारवाद और उपभोक्तावाद की विवेचना की है। इस निबंध के माध्यम से उनकी गहरी वैचारिकता और सहायक सुलभ लालित्य का प्रभाव देखने को मिलता है। उपभोक्तावाद एवं बाजारवाद पर पर व्यापक चर्चा के परिप्रेक्ष्य में यह पाठ एक महत्वपूर्ण निबंध है। कई दशक पहले लिखा गया जैनेंद्र कुमार का यह निबंध आज भी अपने लिए बाजारवाद एवं उपभोक्तावाद के संदर्भ में पूरी तरह प्रासंगिक है और बाजारवाद की मूल अंतर्वस्तु को समझने के मामले में बेजोड़ है।जैनेंद्र कुमार हिंदी साहित्य के जाने-माने साहित्यकार रहे हैं, जिन्होंने अनेक कहानियां एवं निबंधों की रचना की। उनका जन्म 1905 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में हुआ था।

उनकी प्रमुख रचनाओं में अनाम, परख, स्वामी, सुनीता, त्यागपत्र, कल्याणी, एक रात, दो चिड़िया, फांसी, नीलम देश की राजकन्या, प्रस्तुत प्रश्न, जड़ की बात, पूर्वोदय, साहित्य का श्रेय और प्रेय, सोच-विचार, समय और हम, मुक्तिबोध नामक उपन्यास तथा पाजेब नामक कहानी संग्रह है।

उन्हें साहित्य अकादमी तथा भारत भारती पुरस्कार जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा उन्हें भारत सरकार द्वारा द्वारा पद्म भूषण सम्मान भी मिल चुका है। उनका निधन सन 1990 में हुआ।

संदर्भ पाठ :

बाजार दर्शन, लेखक : जैनेंद्र कुमार ( कक्षा – 12, पाठ – 12, हिंदी स्पर्श 2)

 

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पाठ के अन्य प्रश्न

‘बाज़ारूपन’ से क्या तात्पर्य है? किस प्रकार के व्यक्ति बाज़ार को सार्थकता प्रदान करते हैं अथवा बाज़ार की सार्थकता किसमें है?

बाज़ार में भगत जी के व्यक्तित्व का कौन-सा सशक्त पहलू उभरकर आता है? क्या आपकी नज़र में उनका आचरण समाज में शांति-स्थापित करने में मददगार हो सकता है?

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