बाज़ार में भगत जी के व्यक्तित्व का कौन-सा सशक्त पहलू उभरकर आता है? क्या आपकी नज़र में उनका आचरण समाज में शांति-स्थापित करने में मददगार हो सकता है?

बाजार में भगत जी के व्यक्तित्व का यह सशक्त पहलू उभरकर सामने आता है, कि वह बाजारवाद के प्रभाव में आकर विचलित नहीं होते। वह बाजारवाद के प्रभाव में नहीं आते। वह बाजारवाद के नियंत्रण में नही आते हैं। उन्होंने स्वयं पर अपना नियंत्रण स्थापित किया हुआ है।

भगत जी परम संतोषी स्वभाव के व्यक्ति हैं। वे जब बाजार जाते हैं तो अपने मन पर नियंत्रण रखकर और आँखें खोलकर चलते हैं, इसलिए वह बाजार की चमक दमक देखकर आश्चर्यचकित नहीं होते। इस तरह बाजारवाद का जादू उन पर अपना असर नहीं डाल पाता। उन्होंने अपनी आवश्यकता और बाजारवाद के बीच गजब का संतुलन बनाया हुआ होता है, उन्हें केवल वही चाहिए, वह केवल वही खरीदते हैं जो उन्हें वास्तव उन्हें चाहिए।

उनकी आवश्यकताएं बहुत अधिक नहीं है। वे काला नमक और जीरा खरीदने जाते हैं और इसके लिए वे सीधे पंसारी की दुकान पर अपना जरूरत का सामान खरीद कर वापस लौट आते हैं। उसके अलावा वे बाजार की तरफ आँख उठाकर भी नहीं देखते। इससे बाजार वे जादू से बच निकलते हैं।

हमारी दृष्टि में भगत जी जैसा आचरण यदि सब लोग करने लगे तो सही अर्थों में समाज में शांति स्थापित हो सकती है, क्योंकि बाजारवाद की चकाचौंध में अपनी जरूरत से अधिक खरीदना चाहते हैं और अधिक से अधिक खरीदारी के लिए अधिक पैसों की आवश्यकता होती है। अधिक पैसों की आवश्यकता के लिए वह उचित-अनुचित का विचार किए कोई भी कार्य करने तैयार हो जाते हैं। यदि भगत जी जैसा आचरण सब लोग करने लगेंगे तो लोगों की आवश्यकताएं कम होगी आवश्यकताएं कम होने पर उनके जीवन में सुख एवं शांति होगी, जो समाज में शांति स्थापित कर सकती है।

पाठ के बारे में…

यह पाठ जैनेंद्र कुमार द्वारा लिखित एक निबंध है, जिसमें उन्होंने बाजारवाद और उपभोक्तावाद की विवेचना की है। इस निबंध के माध्यम से उनकी गहरी वैचारिकता और सहायक सुलभ लालित्य का प्रभाव देखने को मिलता है। उपभोक्तावाद एवं बाजारवाद पर पर व्यापक चर्चा के परिप्रेक्ष्य में यह पाठ एक महत्वपूर्ण निबंध है। कई दशक पहले लिखा गया जैनेंद्र कुमार का यह निबंध आज भी अपने लिए बाजारवाद एवं उपभोक्तावाद के संदर्भ में पूरी तरह प्रासंगिक है और बाजारवाद की मूल अंतर्वस्तु को समझने के मामले में बेजोड़ है।जैनेंद्र कुमार हिंदी साहित्य के जाने-माने साहित्यकार रहे हैं, जिन्होंने अनेक कहानियां एवं निबंधों की रचना की। उनका जन्म 1905 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में हुआ था।

उनकी प्रमुख रचनाओं में अनाम, परख, स्वामी, सुनीता, त्यागपत्र, कल्याणी, एक रात, दो चिड़िया, फांसी, नीलम देश की राजकन्या, प्रस्तुत प्रश्न, जड़ की बात, पूर्वोदय, साहित्य का श्रेय और प्रेय, सोच-विचार, समय और हम, मुक्तिबोध नामक उपन्यास तथा पाजेब नामक कहानी संग्रह है।

उन्हें साहित्य अकादमी तथा भारत भारती पुरस्कार जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा उन्हें भारत सरकार द्वारा द्वारा पद्म भूषण सम्मान भी मिल चुका है। उनका निधन सन 1990 में हुआ।

संदर्भ पाठ :

बाजार दर्शन, लेखक : जैनेंद्र कुमार ( कक्षा – 12, पाठ – 12, हिंदी स्पर्श 2)

 

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पाठ के अन्य प्रश्न

‘बाज़ारूपन’ से क्या तात्पर्य है? किस प्रकार के व्यक्ति बाज़ार को सार्थकता प्रदान करते हैं अथवा बाज़ार की सार्थकता किसमें है?

बाजार का जादू चढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर क्या-क्या असर पड़ता है?

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