‘अतिथि देवो भव’ उक्ति की व्याख्या करें तथा आधुनिक युग के संदर्भ में इसका आकलन करें।

‘अतिथि देवो भवा’ इस उक्ति का अर्थ है। ‘अतिथि देवता यानी ईश्वर के समान होता है। यह हमारी भारतीय संस्कृति की एक प्रचलित युक्ति है और भारतीय संस्कृति की मूल भावना रही है। भारत में अतिथि को बेहद सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था, उसी के घर पर यदि कोई अतिथि आ जाता था तो उसे देव समान मानकर उसका स्वागत सत्कार किया जाता था। आधुनिक संदर्भ में अगर इस उक्ति का आकलन करें तो अतिथि देवो भवा की उक्ति अनेक संदर्भ में विशेषकर नगरों-महानगरों में प्रासंगिक नहीं रह गई है।

आज के नगर महानगरों के निवासी अपने दैनिक जीवन में कमाई करने व्यापार, नौकरी, करियर आदि में इतने अधिक व्यस्त होते हैं कि उनके पास समय की बेहद कमी होती है। समय की बेहद कमी के अलावा बड़े महानगरों में छोटे-छोटे घरों में रहने वाले लोगों के पास पर्याप्त जगह की भी कमी होती है। ऐसी स्थिति में किसी अतिथि के आ जाने पर लंबे समय तक उसकी आवभगत करना बेहद मुश्किल हो जाता है, इसीलिए यह उक्ति आज के आधुनिक संदर्भ में विशेषकर महानगरों में प्रासंगिक नहीं रह गई है।

पहले के लोगों के पास इतना अधिक समय और पर्याप्त जगह होती थी, इसलिए वह अतिथि स्वागत सत्कार कर लेते थे। आज वैसा नहीं है। आज जनसंख्या अधिक होने के कारण संसाधनों की कमी है। लोगों को जीवन में अधिक संघर्ष करना पड़ रहा है इसलिए उनके पास लंबे समय तक अतिथियों का स्वागत सत्कार करने का समय नहीं है और ना ही धैर्य है। आज के संदर्भ में गांव में उक्ति थोड़ी बहुत प्रासंगिक रह गई है, जहाँ के लोग अभी थोड़ी बहुत प्राचीन भारत की जीवन शैली के अनुसार जीते हैं।

 

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लेखक शरद जोशी की अतिथ्य-सत्कार की भावना पर अपने विचार प्रकट कीजिए।

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