ऐसो को उदार जग माहीं? बिनु सेवा जो द्रवै दीन पर, राम सरिस कोई नाहीं ।
जो गति जोग बिराग जतन करि नहिं पावत मुनि ज्ञानी।
जो संपति बिभीषण कहँ, अति सकुच सहित हरि दीन्ही।
तुलसीदास सब भाँति सकल सुख, जो चाहसि मन-मेरा।
तौ भजु राम काम सब पूरन, करै पानिधि तेरो नाम।।
भावार्थ : तुलसीदास द्वारा रचित ‘विनय पत्रिका’ इन पदों में तुलसीदास कहते हैं कि इस संसार में भगवान प्रभु श्रीराम के जैसा कोई उदार और दयावान नहीं है। प्रभु श्रीराम बिना किसी भेद-भाव के उन सभी दीन-दुखियों पर भी अपनी कृपा बरसा देते हैं, जिन्होंने उनकी सेवा नहीं की है। अर्थात प्रभु दीन-दुखियों के हितकारी हैं और उनकी पीड़ा को समझकर उनका उद्धार करने वाले हैं। प्रभु श्रीराम की इस दयालुता के समान इस संसार में और कौन होगा। बड़े-बड़े ऋषि, मुनि, ज्ञानी, योगी, वैरागी आदि अनेक तरह के जप-तप, साधना-सिद्धि आदि करके भी उस परम पद तक नहीं पहुंच पाते, जिस परम पद तक प्रभु श्रीराम ने जटायु और शबरी जैसे साधारण व्यक्तित्वों को उनकी सेवा भावना से अभिभूत होकर अपनी कृपा करके क्षणभर में पहुंचा दिया। जिस प्रभु कृपा को प्राप्त करने के लिए रावण को अपने 10 सिरों को अर्पण करना पड़ा था वही प्रभु कृपा विभीषण को केवल श्रीराम की भक्ति मात्र करके ही प्राप्त हो गई। तुलसीदास कहते हैं अगर जीवन में सुख और आनंद को पाना है। हर तरह से सुखी होना है तो निरंतर प्रभु श्रीराम का ध्यान करना चाहिए। प्रभु श्रीराम सारी मनोकामनाएं पूरी करेंगे।
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‘जागा स्वर्ण-सवेरा’ का क्या अर्थ है ?
जागृत सब हो रहे हमारे ही आगे हैं में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
“सहनशीलता, क्षमा, दया को तभी पूजता जग है। बल का दर्प चमकता उसके पीछे जब जगमग है।”