जहाँ उपमेय को उपमान से श्रेष्ठ बताया जाए, वहाँ कौन-सा अलंकार होता है?

जहाँ उपमेय को ही उपमान से श्रेष्ठ बता दिया जाए वहाँ ‘व्यतिरेक अलंकार’ होता है।

व्यतिरेक अलंकार किसी काव्य में वहाँ पर प्रयुक्त होता है, जहाँ पर उपमेय को उपमान से अधिक श्रेष्ठ बताया जाता है।

‘व्यतिरेक अलंकार’ की परिभाषा के अनुसार जहाँ कोई कारण स्पष्ट करते हुए उपमेय की श्रेष्ठता उपमान से अधिक बताई जाए, वहाँ पर ‘व्यतिरेक अलंकार’ प्रकट होता है।

‘व्यतिरेक शब्द’ का शाब्दिक अर्थ होता है ‘आधिक्य’ यानी अधिकता।

जहाँ पर उपमेय में उपमान से गुणों की अधिकता दर्शायी गई हो, वहाँ व्यतिरेक अलंकार होता है।
उदाहरण के लिए…

का सरबरि तेहि देऊँ मयकूँ।

चाँद कलंकी वह निष्कलंकू।।

यहाँ पर नायिका के मुख की सुंदरता चाँद से भी अधिक आंकी गई है।
सामान्यतः किसी स्त्री के मुख के सौंदर्य की उपमा चाँद से की जाती है और उसके सुंदर मुखड़े को चाँद के समान सुंदर बताया जाता है, लेकिन यहाँ पर स्त्री के मुख्य को चाँद से भी अधिक सुंदर बताया गया है।
पंक्तियों से स्पष्ट होता है कि नायिका के सुंदर मुख की तुलना चाँद से भी नहीं की जा सकती क्योंकि चाँद में तो कलंक है जबकि नायिका का मुख तो निष्कलंक है।

यहाँ पर नायिका का मुख उपमेय है जबकि चाँद उपमान है और नायिका के मुख यानि उपमेय को चाँद यानि उपमान से श्रेष्ठ बताया गया है। इसलिए इस पंक्ति में व्यातिरेक अलंकार है।

दूसरा उदाहरण समझते हैं…

जिनके जस प्रताप के आगे,
ससि मलिन रवि सीतल लागे।यहाँ पर यश और प्रताप उपमेय हैं, जबकि उपमान चंद्रमा और सूर्य है। यश एवं प्रताप को चंद्रमा एवं सूरज से श्रेष्ठ कहा गया है। इस तरह इस पंक्ति में भी ‘व्यातिरेक अलंकार’ है।

 

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