भक्तिन द्वारा शास्त्र के प्रश्न को अपनी सुविधा के अनुसार सुलझा लेने का उदाहरण लेखिका ने यह दिया है कि लेखिका को भक्तिन का यूं ही हर समय सिर मुंडाये रहना पसंद नहीं था। भक्तिन अपना पूरा सिर मुंडाये रहती थी। लेकिन लेखिका को यह पसंद नहीं था। इसलिए लेखिका ने जब उसको सिर न मुंडाने के लिए टोका तो भक्तिन में अपने सिर मुंडाने के पक्ष में यह तर्क दिया कि ऐसा शास्त्र में लिखा है।
लेखिका जब पूछती है कि शास्त्र में क्या लिखा है तो भक्तिन कहती है कि शास्त्र में लिखा है कि ‘तीरथ गए मुंडाए सिद्ध’। इस तरह वो अपने सिर मुंडाने का तर्क शास्त्र के हवाले से दे देती है, लेकिन वास्तविक स्थिति लेखिका को पता थी। लेखिका जानती थी कि भक्तिन ने जो बात अपने तर्क में कही है, वह किसी शास्त्र में नहीं लिखी बल्कि वह एक कहावत है।
उसने कहावत को शास्त्र का जामा पहनाकर भक्तिन ने अपना तर्क प्रस्तुत कर दिया था। वह अपनी बात पर अड़ी रही। इस तरह अनेकों बातें भक्तिन शास्त्र के हवाले से सही सिद्ध करने की चेष्टा करती थी।
इस तरह कहा जा सकता है कि अपनी सुविधा के अनुसार भक्तिन के हवाले से कहा जा सकता है, कि शास्त्र के प्रश्न को अपनी सुविधा से सुलझा लेती है।
पाठ के बारे में…
यह पाठ महादेवी वर्मा द्वारा लिखा गया एक संस्मरण चित्र है। यह संस्करण चित्र उनकी ‘स्मृति की रेखाएं’ नामक कलाकृति में संकलित है। इस संस्मरण चित्र के माध्यम से महादेवी वर्मा ने अपनी एक सेविका भक्तिन का रेखाचित्र खींचा है और उसके अतीत और वर्तमान का परिचय देते हुए उसके व्यक्तित्व का दिलचस्प व्यक्तित्व का वर्णन किया है।महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य की जानी-मानी लेखिका एवं कवयित्री रही हैं। वह छायावाद युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उनका जन्म 1960 में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद शहर में हुआ था। उनकी प्रमुख कलाकृतियों में दीपशिखा, श्रृंखला की कड़ियां, आपदा, संकल्पिता, अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएं, पथ के साथी, मेरा परिवार, यामा आदि के नाम प्रमुख हैं।
उन्हें भारत का प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरुस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार, उत्तर प्रदेश संस्थान का भारत भारती पुरस्कार तथा भारत सरकार का पद्मभूषण पुरस्कार (1956) में मिल चुका है। उनका निधन 1987 में इलाहाबाद में हुआ।
संदर्भ पाठ :
भक्तिन, लेखिका : महादेवी वर्मा (कक्षा-12, पाठ-11, हिंदी, आरोह भाग 2)
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