भक्तिन अपना वास्तविक नाम लोगों से क्यों छुपाती थी? भक्तिन को यह नाम किसने और क्यों दिया होगा?

भक्ति अपना वास्तविक नाम लोगों से इसलिए छुपाती थी क्योंकि उसका वास्तविक नाम लक्ष्मी था। लक्ष्मी को धन की देवी माना जाता है जबकि भक्तिन वास्तविक जीवन में बिल्कुल ही निर्धन थी और वह लेखिका के यहाँ सेविका का कार्य करती थी तथा उसके वास्तविक जीवन का उसके नाम से कोई सामंजस्य नहीं होता था और दोनों में विरोधाभास था।

लक्ष्मी नाम होने के बावजूद भक्तिन बेहद निर्धन थी, इसलिए उसे ऐसा लगता था कि अपना लक्ष्मी नाम लोगों को बताना उसे शोभा नहीं देगा। वो सिर्फ नाम की लक्ष्मी है। उसके पास लक्ष्मी के रूप में धन आदि बिल्कुल भी नहीं है। उसका नाम सुनकर और उसकी निर्धन हालत देखकर शायद समाज के लोग उसका मजाक उड़ाएं। इसलिए भक्तिन अपना वास्तविक नाम लोगों से छुपाती थी।

भक्तिन के नाम लक्ष्मी की जगह उसको भक्तिन नाम लेखिका महादेवी वर्मा ने ही दिया था। वह जब लेखिका महादेवी वर्मा के यहां काम करने आई तो उसने लेखिका को अपना नाम लक्ष्मी तो बताया था लेकिन उसने लेखिका से निवेदन किया था कि लेखिका को उसके वास्तविक नाम से ना पुकारे। उस समय भक्तिन ने गले में कंठी की माला पहन रखी थी और उसकी व्यक्तित्व सन्यासिन जैसा दिख रहा था। तथा बाद में उसकी कर्तव्यपरायणता तथा सेवा भावना देखकर ही लेखिका ने उसको भक्तिन नाम दे दिया जो भक्तिन को बहुत पसंद भी आया।

पाठ के बारे में…

यह पाठ महादेवी वर्मा द्वारा लिखा गया एक संस्मरण चित्र है। यह संस्करण चित्र उनकी ‘स्मृति की रेखाएं’ नामक कलाकृति में संकलित है। इस संस्मरण चित्र के माध्यम से महादेवी वर्मा ने अपनी एक सेविका भक्तिन का रेखाचित्र खींचा है और उसके अतीत और वर्तमान का परिचय देते हुए उसके व्यक्तित्व का दिलचस्प व्यक्तित्व का वर्णन किया है।महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य की जानी-मानी लेखिका एवं कवयित्री रही हैं। वह छायावाद युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उनका जन्म 1960 में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद शहर में हुआ था। उनकी प्रमुख कलाकृतियों में दीपशिखा, श्रृंखला की कड़ियां, आपदा, संकल्पिता, अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएं, पथ के साथी, मेरा परिवार, यामा आदि के नाम प्रमुख हैं।
उन्हें भारत का प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरुस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार, उत्तर प्रदेश संस्थान का भारत भारती पुरस्कार तथा भारत सरकार का पद्मभूषण पुरस्कार (1956) में मिल चुका है। उनका निधन 1987 में इलाहाबाद में हुआ।

संदर्भ पाठ :

भक्तिन, लेखिका : महादेवी वर्मा (कक्षा-12, पाठ-11, हिंदी, आरोह भाग 2)

 

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पाठ के अन्य प्रश्न

दो कन्या-रत्न पैदा करने पर भक्तिन पुत्र-महिमा में अँधी अपनी जिठानियों द्वारा घृणा व उपेक्षा का शिकार बनी। ऐसी घटनाओं से ही अकसर यह धारणा चली है कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है। क्या इससे आप सहमत हैं?

भक्तिन की बेटी पर पंचायत द्वारा ज़बरन पति थोपा जाना दुर्घटना भर नहीं, बल्कि विवाह के संदर्भ में स्त्री के मानवाधिकार (विवाह करें या न करें अथवा किससे करें) इसकी स्वतंत्रता को कुचले रहने की सदियों से चली आ रही सामाजिक परंपरा का प्रतीक है। कैसे?

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