खानपान की मिश्रित संस्कृति से तात्पर्य अलग-अलग क्षेत्रों और अलग-अलग राज्यों के खानपान का अपने राज्य की सीमा, अपने क्षेत्र की सीमा से बाहर निकल कर पूरे देश अथवा संसार में लोकप्रिय हो जाने से है। आज खानपान की मिश्रित संस्कृति सब तरफ फैल गई है। दक्षिण भारत का इडली, डोसा, इडल, सांभर, उपमा, उत्तपम आदि उत्तर भारत, पश्चिम भारत और पूर्वी भारत में उतने ही लोकप्रिय है, जितने दक्षिण भारत में है। उत्तर भारत के छोले भटूरे देश में सब जगह आसानी से मिल जाएंगे। उत्तर भारत की ढाबा संस्कृति पूरे भारत में फैल गई है। मक्के की रोटी, सरसों का साग केवल पंजाब तक ही सीमित नही रहा बल्कि देश में हर जगह फैल चुका है। महानगरों में फैला हुआ फास्ट फूड कल्चर छोटे-छोटे शहरों और गाँवों में फैल चुका है। इस तरह लोग अपने क्षेत्र के खानपान के अलावा दूसरे क्षेत्रों का खानपान अपनाने लगे हैं और हर तरह के व्यंजनों का लाभ उठा उठा रहे हैं। इसे ही खानपान की मिश्रित संस्कृति कहते हैं।
खानपान की मिश्रित संस्कृति केवल देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो रही है। चाइनीस भोजन आज किसी के लिए अजनबी नहीं रह गया है और भारत के छोटे-छोटे क्षेत्रों में चाइनीज भोजन आसानी से उपलब्ध है। पित्जा, पात्सा, मैकरोनी आदि घर-घर के लोकप्रिय व्यंजन चुके हैं।
खानपान की मिश्रित संस्कृति के पक्ष और विपक्ष
पक्ष : खानपान की मिश्रित संस्कृति से किसी को कोई नुकसान नहीं है। लोगों को अलग-अलग व्यंजनों के चखने का अवसर मिला है। लोगों को अलग अलग क्षेत्रों, राज्यों, देशों के व्यंजनों के स्वाद और पौष्टिकता को चखने का अवसर मिलता है।
विपक्ष : संस्कृति के कुछ अधिक नुकसान नहीं है सकते हैं। इसका नुकसान ये है कि खानपान की मिश्रित संस्कृति से स्थानीय व्यंजनों का प्रभाव कम हुआ है। कुछ बाहरी व्यंजन किसी क्षेत्र मे इतने अधिक लोकप्रिय हो गए हैं, कि स्थानीय व्यंजन गायब होते जा रहे हैं। शायद आने वाला समय में पिज्जा, पास्ता, नूडल्स, चाइनीज के प्रभाव के कारण देसी व्यंजन जैेसे पूरी-कचौड़ी, समोसा आदि पूरी तरह से गायब हो जायें। इस मिश्रित संस्कृति का यही नुकसान है।
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