दीपक दिखाई देने पर अंधियारा उस प्रकार मिट जाता है, क्योंकि कवि ने दीपक और अज्ञान दोनों की तुलना की है। जिस प्रकार दीपक प्रज्वलित होने पर चारों तरफ का अंधकार मिट जाता है। उसी तरह मनुष्य के अंदर ज्ञान का दीपक प्रज्वलित होने पर उसके अंदर अज्ञानता का अंधकार मिट जाता है।
अज्ञानता से तात्पर्य है हमारे अंदर के अंह से है, जब तक हमारे अंदर अहं है, अहंकार है, तब तक हम ईश्वर को नहीं समझ सकते और ना ही ईश्वर को पा सकते हैं। जब हमारे अंदर आत्मज्ञान का प्रकाश होता है और हमारे अंदर का अहं रूपी अंधकार मिट जाता है, तब हमारे अंदर के सारे विकार, भ्रम और संशय रूपी अवगुण नष्ट हो जाते हैं और हमारे अंदर ज्ञान का प्रकाश जल उठता है। तब हम ईश्वर की प्राप्ति की राह पर चल पड़ते हैं।
पाठ के बारे में…
इस पाठ में कबीर की साखी के माध्यम से अनेक नीति वचन कहे गए हैं। साखी शब्द का अर्थ होता है, साक्षी। साखी शब्द का तद्भव रूप है, जो किसी बात का साक्ष्य यानि प्रमाण है।
साक्षी शब्द का प्रत्यक्ष सार्थक अर्थ होता है, प्रत्यक्ष ज्ञान। वह प्रत्यक्ष ज्ञान जो गुरु अपने शिष्य को प्रदान करता है।
साखी एक दोहा छंद है और कबीर के अधिकांश दोहे साखी के नाम से ही प्रसिद्ध है।
कबीर भक्तिकालीन युग निर्गुण विचारधारा के प्रसिद्ध संत कवि रहे हैं, जो चौदहवीं शताब्दी में जन्मे थे। उन्होंने ईश्वर के निराकार रूप की आराधना पर जोर दिया है, और समाज में फैली कुरीतियों और धार्मिक आडंबरों पर तीखा प्रहार किया है।
संदर्भ पाठ :
‘कबीर’ साखी (कक्षा – 10, पाठ-1, स्पर्श)
इस पाठ के दूसरे प्रश्न उत्तर :
‘ऐकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होई’ −इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?
ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते?
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