भिखारी और मंदिर के पुजारी के बीच संवाद लेखन…
पुजारी : भाई एकदम दरवाजे के पास मत बैठो। उधर कोने में बैठो। यहां मंदिर में आने जाने वाले श्रद्धालुओं को तकलीफ हो रही है।
भिखारी : पुजारी जी उधर कोने में बैठने पर कोई नहीं आता। यहां दरवाजे पर बैठने से भीख मिल जाती है।
पुजारी : भाई लेकिन आने जाने वाले श्रद्धालुओं को असुविधा होती है। तुम एकदम रास्ते में बैठे हो। कोने में ना सही, तुम थोड़ा अलग हटकर बैठो ताकि लोगों को आने-जाने लोगों को असुविधा ना हो। यहाँ मंदिर में अनेक दानवीर श्रद्धालु आते हैं। वे तुम्हें भिक्षा देने के लिए ढूंढ ही लेंगे।
भिखारी : ठीक है महाराज मैं थोड़ा अलग हटकर बैठ जाता हूँ। आप सुबह से जरा भी भीख नहीं मिली है और मंदिर में अधिक भीड़ भी नहीं है।
पुजारी : यह लो प्रसाद। यह खा लो। और सुबह से तुमने कुछ खाना खाया है कि नहीं?
भिखारी : नहीं पुजारी जी सुबह से अन्न का एक दाना पेट में नहीं गया है।
पुजारी : ऐसा क्यों करते हो भाई। मंदिर में हमेशा भंडारा चलता रहता है, तो तुमने वहां जाकर खाना क्यों नहीं खाया?
भिखारी : पुजारी जी मुझे सुबह से भीख नहीं मिली थी। इसलिए मैं यहां से हिला ही ही नहीं मैंने सोचा थोड़ी सी भीख मिल जाए, उसके बाद खाना खाने जाऊंगा ऐसा करके समय बीत गया। भंडारा स्थल यहाँ से थोड़ा दूर है। आने जाने में समय लगता है, इसलिए मैं नहीं जा पाया।
पुजारी : कोई बात नहीं। अभी तुम चले जाओ। अभी दोपहर का समय है। श्रद्धालु कम आएंगे। शाम के समय अधिक श्रद्धालु आएंगे तब तुम्हें भीख मिल जाएगी। तब तक तुम खाना खाकर आ जाओ। और ध्यान रखना दरवाजे से थोड़ा हटकर बैठना ताकि आने जाने वाले श्रद्धालुओं को कष्ट ना हो।
भिखारी : ठीक है पुजारी जी। मैं खाना खाकर शाम को आता हूँ।
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