यशोधर बाबू अपने घर में ही असहाय बन चुके थे, यह बात पाठ में स्पष्ट रूप से दिख रही थी। यशोधर बाबू के बच्चे उनकी बात नहीं मानते थे और वह अपने अनुसार जीना चाहते थे। उन्हें ना तो अपने पिता के प्रति सम्मान था और ना ही किसी महत्वपूर्ण विषय पर वह अपने पिता से कोई सलाह लेते थे। उन्हें अपने पिता से अधिक बात करना भी पसंद नहीं था। घर में उनकी संतान के अलावा उनकी पत्नी भी उनका साथ छोड़कर बच्चों का ही पक्ष लेती थी।
घर के लगभग सभी लोग ही उन्हें उपेक्षा एवं गिरफ्तार की दृष्टि से देखते थे। वह अपने बच्चों की किसी बात का विरोध करना चाहते थे तो बच्चे उनसे तर्क वितर्क करते थे। उइसी कारण वह घर में जो चल रहा है, वह उसी को स्वीकारने के लिए मजबूर हो जाते हैं और बिल्कुल असहाय बनकर रह जाते हैं। अब उनके अंदर किसी भी तरह का विरोध प्रदर्शन करने की सामर्थ्य नहीं बची थी।
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