अपने घर के बड़े – बूढों से उनके समय की शिक्षा, सामाजिक परिवेश व संस्कृति के विषय में चर्चा करके उसे संवाद
दादा : (पोते से) मैं श्याम से देख रहा हूँ कि तुम बस खेल ही रहे हो ,तुमने किताब को हाथ भी नहीं लगाया । स्कूल का काम कब खत्म करोगे ?
पोता : (शैतानी करते हुए ) दादा जी, आज बिजली नहीं है और अंदर बहुत गर्मी है ,कैसे पढ़ाई करूँ ?
दादा : बेटा स्कूल का काम नहीं करोगे तो गुरु जी को क्या जवाब दोगे ?
पोता : बोल दूंगा कि मेरे घर पर बिजली नहीं थी इसलिए काम नहीं कर पाया ।
दादा : ( समझाते हुए ) बेटा अपने गुरु जी से कभी भी झूठ नहीं बोलना चाहिए । क्योंकि गुरु से झूठ बोलना मतलब भगवान से झूठ बोलना ।
पोता : (उत्सुकता से) दादा जी, जब आपके समय में बिजली जाती तो आप क्या करते थे ?
दादा : (हँसते हुए ) हमारे समय में बिजली का नामोनिशान भी नहीं था ।
पोता : (हैरानी से) तो आप पढ़ाई कैसे करते थे ?
दादा : ( पुराने समय को याद करते हुए) हमारा समय था जब हम लाल टेन की रौशनी में पढ़ाई किया करते थे ।
पोता : बिना बिजली के गर्मी में तो आपका बुरा हाल हो जाता होगा ?
दादा : (मुसकुराते हुए) हमारे समय में आज जैसी गर्मी नहीं पड़ती थी । ठंडी-ठंडी हवा बहा करती थी । बाकी का काम हाथ वाला पंखा कर देता था ।
पोता : तो अब इतनी गर्मी क्यों पड़ती है ?
दादा : क्योंकि अब पहले जितने पेड़ नहीं बचे है । पहले चारों ओर हरियाली थी, सड़कों के किनारे छायादार वृक्ष लगे होते थे इसीलिए गर्मी भी कम पड़ती थी । लेकिन आज कल लोग भविष्य की चिन्ता किए बिना अपनी स्वार्थ लिप्सा के कारण पेड़ों को काटते जा रहे हैं ।
पोता : और कुछ बताइए दादा जी ।
दादा : हम कभी भी अपने गुरुजनों से झूठ नहीं बोलते थे और बड़ों के पैर छू कर उनका आशीर्वाद लिया करते थे । लेकिन आज कल के बच्चों को पैर छूने में शर्म आती है । अपनी मात्री भाषा बोलने में भी शर्म आती है । अंग्रेज़ी बोलने में अपनी शान समझते हैं ।
पोता : तो क्या हमें अंग्रेज़ी भाषा नहीं बोलनी चाहिए ?
दादा : नहीं , मेरा मतलब है कि भाषा चाहे कोई भी बोलो लेकिन अपनी मात्री भाषा बोलने में शर्म महसूस नहीं करनी चाहिए । आधुनिकता की चकाचौंध में हमें अपनी संस्कृति, सभ्यता व संस्कारों को दरकिनार नहीं करना चाहिए । वरना हम कभी भी तरक्की नहीं कर पाएंगे और वह दिन दूर नहीं जब हम एक बार फिर किसी के गुलाम हो जाएंगे ।
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