लेखक की माँ ने लेखक को फिल्म देखने के लिए पैसे इसलिए दिए क्योंकि जब उन्हें मालूम पड़ा कि उनका बेटा ‘दुख के दिन बीतत नाही’ गाना गाता रहता है और वह फिल्म देवदास का ही है, तो सिनेमा की घोर विरोधी लेखक की माँ ने अपने बेटे से कहा अपना मन क्यों मारता है, जाकर पिक्चर देख आ। पैसे मैं दे दूंगी लेखक की माँ का हृदय का एक माँ का हृदय था, वह अपने बेटे के दिल को तोड़ना नहीं चाहती थी। इसीलिए लेखक की माँ ने घर की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के बावजूद लेखक को फिल्म देखने के लिए पैसे देने की बात कही।
‘मेरा छोटा सा निजी पुस्तकालय’ में लेकर धर्मवीर के बचपन में लेखक के घर की आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो गई थी। लेखक को पुस्तकों का बहुत अधिक शौक था। इसके अलावा लेखक को फिल्मों का देखने का भी शौक था। उन्हीं दिनों देवदास फिल्म लेखक घर के पास के थिएटर में लगी थी। फिल्म का एक गाना ‘दुख के दिन बीतत नाही’ लेखक गुनगुनात रहता रहता था। लेखक के मुँह से यह गाना सुनकर लेखक की माँ ने लेखक को समझाया कि दुख के दिन बीत जाएंगे, दिल छोटा ना कर। उसके साथ उन्हें मालूम हुआ कि यह गाना फिल्म देवदास का है, तो उन्होंने फिल्म आने के लिए कहा, पैसे मैं दे दूंगी। जबकि लेखक की माँ फिल्मों की फिल्मों की घोर विरोधी और उनके घर की आर्थिक स्थिति ठीक नही थी।
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