भ्रष्टाचार का अर्थ
भ्रष्टाचार “भ्रष्ट और आचरण” दो पदों के योग से बना है । भ्रष्टाचार शब्द का अर्थ है – निकृष्ट आचरण अथवा बिगड़ा हुआ आचरण । भ्रष्टाचार संस्कृत भाषा के दो शब्द “भ्रष्ट” और “आचार” से मिलकर बना है।
“भ्रष्ट” का अर्थ होता है – निम्न, गिरा हुआ, पतित, जिसमें अपने कर्तव्य को छोड़ दिया है तथा “आचार” शब्द का अर्थ होता है आचरण, चरित्र, चाल, चलन, व्यवहार आदि । भ्रष्टाचार, ऐसे गिरे हुए आचरण को कहा जाना चाहिए जो कानूनी एवं नैतिक दृष्टि से गलत हो, नैतिक दृष्टि का तात्पर्य पर हित या सार्वजनिक हित से है,न अपने पद की शक्तियों की दुरुपयोग करते हुए (यह शक्ति किसी भी प्रकार की हो सकती है) व्यक्तिगत, या चहेतो को लाभ पहुँचाना भ्रष्टाचार की श्रेणी के अन्तर्गत ही आता है ।
भ्रष्टाचार के प्रभाव
चिड़चिड़ा स्वभाव और तनाव ग्रस्त
होकर भ्रष्ट लोग अपनी शक्ति और सत्ता की दृष्टि से कर्कश और चिड़चिड़े हो जाते हैं । वे पलायनवाद, अकेलापन, आदर्शहीनता की भावनाओं के आधार पर अलगाव के शिकार हो जाते हैं और भावनात्मक रूप से तनाव ग्रस्त और उत्तेजित रहते हैं ।
व्यक्ति में निराशा का विकास
भ्रष्टाचार रूपी दैत्य के आगे सदाचारी लोग छोटे हो जाते हैं । उनमें गुण और योग्यता होने के बावजूद उन्हें अपने विकास के अवसर नहीं मिल पाते । अतः अपने सम्बन्ध से वंचित होने और उनमें बलपूर्वक स्थान पाने की भावना उनमें निराशा भर देती है । वे उदासीन और शक्तिहीन महसूस करते हैं ।
नैतिक पतन
भ्रष्टाचार के कारण व्यक्ति चरित्रहीन हो जाता है । साधन की शुद्धता का सवाल उठाना ही असंगत हो जाता है । ऐसे व्यक्ति, चरित्र के मामले में पतित, अच्छे प्रशासक या राजनेता नहीं हो सकते । काम चलता रहे या ‘कुर्सी सुरक्षित रहे’ ये उनके मूल मंत्र बन जाते हैं । नैतिक पतन उन्हें जुआ, शराबखोरी, स्त्री-सहवास जैसी बुराइयों की ओर ले जाता है जिससे उनका और नैतिक पतन होता है ।
कभी न मिटने वाली भूख
भ्रष्टाचार के रोग से ग्रस्त व्यक्ति में तन और धन दोनों की कभी न मिटने वाली भूख पैदा हो जाती है और वह संतुष्टि की तलाश में भटकता रहता है जो मृग तृष्णा की तरह उससे दूर भागती रहती है ।
भ्रष्टाचार के कारण होने वाली हानियाँ
सामाजिक असमानता में वृद्धि
भ्रष्टाचार के माध्यम से पैसा चंद हाथों में केंद्रित हो जाता है । स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के दरवाजे बंद हो गए हैं और गरीब और अमीर के बीच की खाई बढ़ती जा रही है । जीविका के लिए, गरीब भ्रष्ट कार्यों में दास के रूप में कार्य करता है । यह असमानता असंतोष और दोषों को बढ़ाती है ।
समाज सुधार और प्रगति में बाधाएँ
भ्रष्टाचार के कारण निहित स्वार्थ समाज सुधार के कार्य में बाधक बन जाते हैं क्योंकि सुधार से उनके हितों को ठेस पहुँचती है । सरकार कानून नहीं बना पा रही है और बना भी ले तो उसे लागू नहीं कर पाती । विकास कार्यों में बाधा आती है क्योंकि योजना-व्यय का एक बड़ा हिस्सा विकास कार्यों से भटक कर भ्रष्टाचार की नीतियों के बहकावे में चला जाता है ।
शिक्षा का क्षेत्र
भ्रष्टाचार ने शिक्षा क्षेत्र में भी अपनी जडें जमा ली हैं । रुपये (कैपिटेशन फीस) लेकर स्कूलों/कॉलेजों में प्रवेश देना, विद्यालयों द्वारा सामूहिक नकल कराना, प्रश्नपत्र आउट करना, पैसे लेकर पास कराना और बहुत अधिक अंक दिलाना, जाली प्रमाणपत्र और मार्कशीट बनाना आदि शिक्षा क्षेत्र में भ्रष्टाचार के कुछ उदाहरण हैं । स्कूल/कालेजों को मान्यता देने में अरबों रुपए का लेनदेन होता है; इंस्पैक्शन रिपोर्टें सही नहीं होतीं ।
प्राइवेट कोचिंग का बोलबाला है । स्कूलों में शिक्षक स्वयं नहीं पढ़ाने आते, बहुतों ने पाँच सौ-हजार रुपए मासिक पर किसी ऐरे-गैरे को अपने जगह पर पढ़ाने के लिए रख छोड़ा है । नेताओं और अधिकारियों की मिलीभगत से हजारों करोड़ के नकल उद्योग, नियुक्ति उद्योग एवं स्थानान्तरण उद्योग स्थापित हो गये हैं ।
उत्तर प्रदेश में नकल पर नकेल कसने के लिए कल्याण सिंह ने नकल अध्यादेश लागू किया था जिसे मुलायम सिंह यादव ने चुनावी मुद्दा बनाया और सार्वजनिक घोषणा की कि चुनाव जीतने पर मुख्यमन्त्री बनते ही नकल अध्यादेश वापस ले लूंगा ।
सामाजिक विघटन और नैतिक पतन
भ्रष्टाचार सामाजिक विघटन को बढ़ाता है क्योंकि इसके संरक्षण में जुआघर, वेश्यालय आदि चलते हैं । पुलिस अधिकारियों के क्षेत्र में ये आपराधिक संगठन, सुरक्षा के लिए नियमित ‘सुरक्षा जमा राशि’ क्षेत्र को प्रभारी देता है और इसका वितरण श्रेणी के अनुसार कर्मचारियों को दिया जाता है ।
व्यक्तियों का नैतिक पतन उन्हें अपराध के रास्ते पर ले जाता है । जब किसी व्यक्ति के पास काला धन आता है, तो वह उसे सीधे कामों या संपत्ति आदि में नहीं दिखा सकता, वह इसे सुरा और सुंदरता पर खर्च करता है । व्यक्तिगत विघटन भी परिवार के विघटन को मजबूत करता है ।
दूषित राजनीतिक वातावरण का निर्धारण
भ्रष्टाचार के कारण राजनीतिक व्यवस्था पूर्णतः प्रदूषित हो जाती है ।भ्रष्टाचार भी राजनीति से पोषित होकर राजनीतिक विघटन का कारण बन जाता है । राजनीतिक दृष्टिकोण से भ्रष्टाचार के परिणाम इस प्रकार हैं राजनीतिक दलों का नेतृत्व अवांछनीय तत्वों के हाथ में चला जाता है और दल का सर्वांगीण पतन हो जाता है।
लोगों का राजनेताओं और प्रशासन पर से विश्वास उठ जाता है और जनता में असुरक्षा की भावना बढ़ जाती है। कानून व्यवस्था चरमराने लगती है। जनता को सही दिशा देने की राजनीतिज्ञों की क्षमता क्षीण होती है, क्योंकि उनके वाक्य जनता को थोथे लगते हैं।
राष्ट्र निर्माण में बाधक
भ्रष्टाचार राष्ट्र निर्माण की गति को धीमा कर देता है । राष्ट्र-निर्माण केवल बांधो के निर्माण से, बड़े-बड़े कारखाने लगाने से नहीं होता, बल्कि जिम्मेदार नागरिकों के निर्माण से होता है । आखिरकार, यह देश के नागरिक हैं जो हर विकास कार्य के लिए जिम्मेदार हैं । यदि नागरिक चरित्र की दृष्टि से पतित हैं तो राष्ट्र की हानि भी अवश्यम्भावी है ।
अन्य प्रश्न
जब हम पिकनिक पर गए अनुच्छेद लिखिए।
परोपकार विषय पर लगभग 100 शब्दों में एक लघु कथा लिखिए।