भक्ति आंदोलन भारत का एक प्रमुख आंदोलन था, जो भारत के मध्य कालीन युग का सबसे बड़ा प्रमुख आंदोलन था। आंदोलन भारत में हिंदू धर्म में सुधारवादी प्रक्रिया के तहत शुरू हुआ था। इस आंदोलन का समय काल बेहद लंबा रहा और यह आंदोलन 8वीं शताब्दी से लेकर 17वीं शताब्दी तक चलता रहा।
भक्ति आंदोलन आठवीं शताब्दी में दक्षिण भारत के अलवार और नयनार संतो से शुरू होकर अंत में सत्रहवीं शताब्दी में रामकृष्ण परमहंस व भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद तक जाकर खत्म हुआ।
भक्ति आंदोलन की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार थी …
भक्ति आंदोलन का मुख्य सिद्धांत एक ईश्वर को मानना था। भक्ति आंदोलन के अधिकतर संत कवियों ने ‘ईश्वर एक है’ पर ही जोर दिया था।
भक्ति आंदोलन में भेदभाव को पूरी तरह नकार दिया गया था और किसी भी तरह की जातिगत व्यवस्था का खंडन किया गया था।
भक्ति आंदोलन में हिंदू धर्म में व्याप्त धार्मिक कर्मकांड और कुरीतियों और आडंबरों पर भी तीखा प्रहार किया गया था और इस तरह के धार्मिक धार्मिक कर्मकांड से दूर रहने को प्रेरित किया गया था।
भक्ति आंदोलन के अधिकतर संत कवियों ने समाज सुधारक के रूप में कार्य किया और उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों का उन्मूलन करने में अहम भूमिका निभाई।
भक्ति आंदोलन के संत कवियों में अलवार, नयनार संत, आदि गुरु शंकराचार्य, गुरु नानक, दादू दयाल, कबीर दास, कवयित्री ललद्यद, तुलसीदास, सूरदास, चैतन्य महाप्रभु, मीराबाई, हरिदास, रविदास, संत पीपा, समर्थ गुरु रामदास, संत ज्ञानेश्वर, नामदेव, माधवाचार्य, रामकृष्ण परमहंस और भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद प्रमुख रहे हैं।
अन्य प्रश्न
[…] […]