आज जीत की रात पहरुए, सावधान रहना।
खुले देश के द्वार अचल दीपक समान रहना
प्रथम चरण है नये स्वर्ग का है मंजिले का छोर
इस जन-मंथन से उठ आई पहली रतन हिलोर
अभी शेष है पूरी होना जीवन मुक्ता डोर
क्योंकि नहीं मिट पाई दुख की विगत साँवली कोर
ले युग की पतवार बने अंबुधि समान रहना
पहरुए, सावधान रहना
संदर्भ : यह काव्य पंक्तियां गिरिजाकुमार माथुर द्वारा लिखी गई कविता से ली गई हैं। इसके माध्यम से कवि ने भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के निवासियों और सीमा के पहरेदारों को देश की सुरक्षा और देश के नव-निर्माण के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया है।
संदर्भ : कवि कहता है कि देश के रक्षकों देश को स्वतंत्र मिल गई है। आज विजय की रात है। अब तुम्हारी बारी है। तुम्हे देश की सुरक्षा के लिए निरंतर लगे रहना है और हमेशा सतर्क बने रहना है। यह स्वतंत्रता बड़ी मुश्किल और प्रयासों से मिली है। इसे हमें संभाल कर रखना है। हमें अपने देश को स्वर्ग बनाना है। यह देश के नव निर्माण का प्रथम चरण है।
अब अभी मंजिलें बहुत दूर हैं। देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के कारण देश के जनमानस में उमंग एवं उत्साह भरा हुआ हैष लेकिन इसके साथ ही अभी उन्हें पूरी तरह मुक्त होने की छटपटाहट भी है। देश के जनमानस में अंग्रेजों द्वारा दिए गए दुखों की कसक अभी खत्म नहीं हो पाई है और वह दुख में अभी भी याद आते हैं। पराधीनता की काली छाया अभी पूरी तरह दूर नहीं हुई है। अभी हमें देश के निर्माण में लगना है और नवनिर्माण की पतवार लेकर देश को समुद्र के समान महान बनाना है।
अन्य प्रश्न
चुप रहने के, यारों बड़े फायदे हैं, जुबाँ वक्त पर खोलना सीख लीजे । भावार्थ ?