प्रेमचंद का व्यक्तित्व
प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को तत्कालीन संयुक्त प्रांत (वर्तमान उत्तर प्रदेश) के वाराणसी जिले के लमही नामक गाँव में हुआ था। मुंशी प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। प्रेमचंद के पिता का नाम मुंशी अजायबराय तथा माता का नाम आनंदी देवी था। प्रेमचंद के पिता लमही के डाकघर में डाकमुंशी थे, इसीलिए उन्हें लोग मुंशी अजायब राय कहते थे।। इसी कारण प्रेमचंद को भी मुंशी प्रेमचंद कहा जाने लगा था।
उनका वास्तविक राय नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। उनकी की आरंभिक शिक्षा दीक्षा फारसी भाषा में हुई। फारसी के अलावा उनकी हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी भाषाओं पर गहरी पकड़ थी।
प्रेमचंद बचपन से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। यद्यपि वह उनका वास्तविक नाम धनपत राय था, लेकिन उन्होंने अपनी साहित्यिक यात्रा नवाब राय नाम से उर्दू भाषा में शुरू कर दी थी। वह सरकारी नौकरी करते थे और सरकारी सेवा करते हुए उन्होंने कहानियां लिखनी आरंभ कर दी थी।
कृतित्व :
प्रेमचंद बचपन से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। यद्यपि वह उनका वास्तविक नाम धनपत राय था, लेकिन उन्होंने अपनी साहित्यिक यात्रा नवाब राय नाम से उर्दू भाषा में शुरू कर दी थी। वह सरकारी नौकरी करते थे और सरकारी सेवा करते हुए उन्होंने कहानियां लिखनी आरंभ कर दी थीं।
अनेक उर्दू पत्रिका में उनकी कहानियां छपती थीं। उन्होंने टॉलस्टॉय की कई कहानियों का हिंदी में अनुवाद भी किया था। ‘सोजे वतन’ नाम का उनका प्रथम कहानी संग्रह था, जो अंग्रेजों द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था, क्योंकि उस कहानी संग्रह में उन्होंने देशभक्ति से भरी बातों का जिक्र किया था, जो अंग्रेजों को पसंद नहीं आया था।
अंग्रेजों द्वारा उनके कहानी संग्रह को प्रतिबंधित कर दिए जाने के बाद उन्होंने हिंदी भाषा में लेखन कार्य आरंभ किया और मुंशी प्रेमचंद नाम से हिंदी भाषा में लेखन कार्य करने लगे। हिंदी में उन्होंने लगभग 15 उपन्यास और 300 से अधिक कहानियां लिखी।
सुमित्रानंदन पंत व्यक्तित्व
सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 को तत्कालीन उत्तर-पश्चिम प्रांत के अल्मोड़ा जिले के ‘कौसानी’ गाँव में हुआ था।
उनका मूल नाम ‘गोसाई दत्त’ था। ‘सुमित्रानंदन पंत’ नाम उन्होंने बाद में रखा।
‘सुमित्रानंदन पंत’ के पिता का नाम ‘गंगाधर दत्त’ था। उनकी माता का नाम ‘सरस्वती देवी’ था। उनकी माता की मृत्यु सुमित्रानंदन पंत के जन्म के कुछ घंटों के बाद ही हो गयी थी, इसलिये उनका पालन पोषण उनकी दादी ने किया था।
उनकी आरंभिक शिक्षा-दीक्षा अल्मोड़ा में ही हुई और वहां के गवर्नमेंट हाई स्कूल से उन्होंने शिक्षा प्राप्त की। इसी हाई स्कूल में पढ़ते समय उन्होंने अपना मूल नाम ‘गोसाई दत्त’ से ‘सुमित्रानंदन पंत’ रख लिया था। बाद में उन्होंने वाराणसी के क्वींस कॉलेज से अपनी शेष पढ़ाई पूरी की और उसके बाद इलाहाबाद में अपनी पढ़ाई जारी रखी।
कृतित्व :
सुमित्रानंदन पंत हिंदी काव्य जगत के जाने-माने कवि थे। वह छायावाद युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक स्तंभ माने जाते हैं। उन्हें छायावाद युग के चार प्रमुख कवि में से एक माना जाता है। सुमित्रानंदन पंत इन चार कवियों के साथ छायावाद युग के प्रमुख स्तंभ रहे हैं। सुमित्रानंदन पंत को ‘प्रकृति का सुकुमार कवि’ का जाता है। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से प्रकृति के प्राकृतिक दृश्यों का जितना अधिक सुंदर चित्रण मनोरम और सुंदर चित्रण किया है, वैसा अन्य किसी भी कवि ने नहीं किया। इसी कारण उन्हें ‘प्रकृति का सुकुमार कवि’ कहा जाता है।
सुमित्रानंदन पंत को बचपन से ही बेहद कम आयु से ही साहित्य से लगाव हो गया था और मात्र 7 वर्ष की आयु से ही वह कविताएं लिखना आरंभ करने लगे। उनकी कविताएं ‘अल्मोड़ा अखबार’ नामक पत्र में छपती थीं और तथा एक हस्तलिखित पत्रिका ‘सुधाकर’ से भी वह जुड़े रहे।
अन्य प्रश्न
जरूरतमंद की मदद करना ही सच्ची तीर्थयात्रा है।’ तीर्थयात्रा कहानी के आधार पर सिद्ध कीजिए ।