बिहपुर स्टेशन पहुंचकर हरगोबिन की मानसिक स्थिति बेहद ऊहापोह वाली थी। बिहपुर पहुँचकर हरगोबिन का मन भारी हो गया था। वह पहले भी कई तरह के भले-बुरे संवाद लेकर इस गाँव में आया था लेकिन पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था। उसके पैर गाँव की ओर बढ़ ही नहीं पा रहे थे। उसके मन में कशमकश की स्थिति थी कि वह बड़ी बहुरिया का संवाद उसके मायके में कैसे बता पाएगा जाएगा। यदि उसके मायके वाले संवाद सुनेंगे और उसको बड़ी बहुरिया को बुला लेंगे तो वह गाँव छोड़ कर चली जाएगी और अपने मायके में ही रहेगी। फिर वह कभी गाँव लौट कर नहीं आएगी। तब गाँव का क्या होगा? गाँव की लक्ष्मी गांव छोड़ कर चली जाएगी तो गाँव का की प्रतिष्ठा धूल में मिल जाएगी। जब ये संवाद वह बड़ी बहुरिया के मायके में सुनायेगा कि बड़ी बहुरिया बथुआ का साग खाकर गुजारा कर रही है। यह सुनकर तो उसके गाँव का नाम लेकर लोग उस पर थूकेंगे। इसलिए हरगोबिन के संदेश सुनाने समय झिझक हो रही थी, और उसकी मानसिक स्थिति उहापोह वाली थी कि कैसे संदेश बताये।
इस पाठ से संबंधित कुछ और प्रश्न…
संवदिया डटकर खाता है और अफर कर सोता है’ से क्या आशय है?
संवदिया की क्या विशेषताएँ हैं और गाँववालों के मन में संवदिया की क्या अवधारणा हैं?
जलालगढ़ पहुँचने के बाद बड़ी बहुरिया के सामने हरगोबिन ने क्या संकल्प लिया?