कवि सहायक के न मिलने पर यह प्रार्थना करता है कि भले ही उसे जीवन में कोई सहायक ना मिले, भले ही पूरा संसार उसके विरुद्ध हो जाए, लेकिन आपदा-विपदा की स्थिति में उसका साहस और आत्मबल कभी कम ना हो। विपत्ति में उसका आत्मबल और उसका पौरुष कभी न डिगे।
किसी भी तरह की आपदा-विपदा में भले ही संसार उसका सहयोग ना करें, उसे कोई भी सहायक ना मिले लेकिन उसका आत्मविश्वास, उसका आत्मबल, उसका साहस, उसक पौरुष कभी कम न हो, क्योंकि ये ही उसके सबसे बड़े सहायक है। कवि ईश्वर से यही प्रार्थना कर रहा है कि उसके ये गुण उसके साथ बने रहें।
पाठ के बारे में…
इस पाठ में रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित कविता ‘आत्मत्राण’ को प्रस्तुत किया गया है। यह कविता मूल रूप से बांग्ला में लिखी गई थी, जिसका अनुवाद हजारी प्रसाद द्विवेदी ने हिंदी में किया है। इस कविता के माध्यम से कवि गुरु रविंद्र टैगोर मानते हैं कि ईश्वर ने सब कुछ संभव कर देने की सामर्थ होती है, फिर भी ईश्वर नहीं चाहते कि वह वही सब कुछ करें। क्योंकि ईश्वर चाहते हैं कि मनुष्य अपने जीवन में आपदा विपदा, कष्ट से आदि की स्थिति में स्वयं संघर्ष करना सीखें ।
कविता में कवि ने कहा है कि तैरना चाहने वालों को पानी में कोई उतार तो सकता है, लेकिन तैरना सीखने के लिए तैरने वाले को ही स्वयं हाथ पैर चलाने पड़ते हैं। तभी वह तैराक बनाता है। परीक्षा देने जाने वाला छात्र अपने बड़ों से और गुरुजनों से आशीर्वाद लेता है और उसके बड़े उसे सफल होने का आशीर्वाद तो देते हैं, लेकिन आशीर्वाद देने से ही सफल नही हुआ जा सकता है, उसे स्वयं परीक्षा देनी होगी, तभी आशीर्वाद फलीभूत होगा।
कविता में कवि के कहने का मूलभाव यही है कि मनुष्य को जीवन में स्वयं संघर्ष करना सीखना चाहिए तो ईश्वर उसके संघर्ष को आसान बना सकते हैं। हाथ-पर हाथ रखरकर बैठने वाले की ईश्वर सहायता नहीं करतेष ईश्वर केवल कर्मशील मनुष्य की सहायता करते हैं।रवींद्रनाथ ठाकुर बंगाली भाषा के महान कवि एवं लेखक रहे हैं। उनका जन्म 6 मई 1818 को कोलकाता के एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। वह साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले भारतीय भी हैं। उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार उनकी काव्य कृति ‘गीतांजलि’ के लिए मिला था।
उनके उनके द्वारा रची गई अन्य काव्य कृतियों के नाम इस प्रकार हैं, पूरबी, काबुलीवाला, नैवेद्य, बलाका, क्षणिका, चित्र और सांध्यगीत। इनके अलावा उन्होंने अनेकों कहानियां लिखी थीं। उनका निधन 1941 में हुआ था।
संदर्भ पाठ :
“आत्मत्राण” कविता, रवींद्रनाथ ठाकुर (कक्षा – 10, पाठ – 9, हिंदी, स्पर्श भाग-2)
इस पाठ के अन्य प्रश्न
‘विपदाओं से मुझे बचाओं, यह मेरी प्रार्थना नहीं’ − कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है?
कवि किससे और क्या प्रार्थना कर रहा है?
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