सिनेमा मनुष्य के मनोरंजन का एक प्रमुख साधन है । सिनेमा में प्रमुख मनोहारी प्राकृतिक दृश्य, सुंदर एवं सुमधुर गीतों का समावेश, स्वाभाविक अभिनय एवं कथानक की रोचकता आदि मनुष्य को अत्यधिक
आकर्षित करते हैं ।
सिनेमा के लाभ
सिनेमा शिक्षा के प्रसार में भी बड़े उपयोगी हैं । इसके द्वारा वैज्ञानिक और भौगोलिक ज्ञान को अच्छी तरह प्रस्तुत किया जा सकता है । रामायण और महाभारत के प्रसंगों पर बने चित्र लोगों को सत्य, सदाचार और न्याय की प्रेरणा देते हैं ।
ऐतिहासिक फिल्में अपने युग का आईना बनकर हमें प्रभावित करती हैं । सिनेमा राष्ट्रीय एकता बढ़ाते और राष्ट्रभाषा का प्रचार भी करते हैं । सिनेमा केवल मनोरंजन का ही साधन नहीं है, अपितु यह तो व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और विश्व के लिए भी उपयोगी सिद्ध हुआ है । सिनेमा ज्ञान के भी स्रोत होते हैं । अनेक देशों की भौगोलिक, ऐतिहासिक, सामाजिक तथा धार्मिक विचारधाराओं को इनसे जाना जा सकता है ।
अनेक वैज्ञानिक अनुसंधानों एवं प्रयोगों को भी समझा जा सकता है । प्राकृतिक दृश्यों का आनंद भी इनसे मिलता है । शिक्षा के क्षेत्र में आधुनिक युग में सिनेमा का विशेष महत्व बढ़ गया है । सामाजिक दृष्टि से सिनेमा के द्वारा समाज में व्याप्त रूढ़ि और अंधकार तथा बुराइयों से लोगों को परिचित कराया जा सकता है । जैसे-दहेज प्रथा, बाल-विवाह, छुआछूत आदि ।
सिनेमा राष्ट्रीय एकता तथा भावनात्मक एकता को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होते हैं । सभी देशों की फिल्मों के आदान-प्रदान और प्रदर्शन विश्व मानव की समस्या से परिचित होकर समृद्धि और शांति का मार्ग ढूँढ़ते हैं । इन फिल्मों के माध्यम से कला, अभिनय ,संगीत , विज्ञान आदि की शिक्षा भी प्रभावी रूप में दी जा सकती है ।
सिनेमा की हानियाँ
सस्ते और रोमांचक चलचित्र समाज पर बुरा असर भी डालते हैं । इनके कारण समाज में फैशन, दिखावा और निरंकुशता की वृत्तियाँ फैलती हैं । सिनेमा के अश्लील और हिंसात्मक दृश्यों, भद्दे गीतों और पाश्चात्य नृत्यों के कारण लोगों में बुरे संस्कार पैदा होते हैं ।
कुछ फिल्में लोगों को हत्या, शोषण, चोरी, डकैती, तस्करी जैसी बुराइयों की ओर ले जाती हैं । सचमुच, ऐसी फिल्मों से लोगों के चरित्र का पतन होता है । सिनेमा के उपयोगी पक्ष के अतिरिक्त उसकी एक दूसरी तस्वीर भी है, जो विध्वंसात्मक पक्ष करती है ।
आधुनिक युग में बनने वाली फिल्मों ने युवा पीढ़ी को सर्वाधिक लुभाया है । सिनेमा कलाकारों की अभिनय क्षमता से नहीं, अपितु उनके ऐश्वर्य तड़क-भड़क और आमोद-प्रमोद के जीवन से आकर्षित होकर कई युवक-युवतियाँ अपने मानस में यही स्वप्न देखने लगते हैं ।
कई बार ऐसे उदाहरण भी मिले हैं, जब ये घर से भाग गए तथा असामाजिक तत्वों के हाथ पड़कर या तो कुमार्ग पर चल पड़े अथवा जीवन से ही हाथ धो बैठे । यह संसार और चकाचौंध का संसार है, जिसका आकर्षण युवक और युवतियों को मोहित करता है । इसपक्ष के साथ ही आधुनिक युग में निर्मित होने वाली फिल्में प्रेरणाप्रद और शिक्षादायक भी नहीं होती हैं ।
उनमें जीवन का सत्य कम और भावनाओं को उदीप्त करने वाले प्रसंग अधिक होते हैं । अश्लील दृश्य, नग्नता, नृत्य और कामुक हाव-भाव, भंगिमा व संवाद किशोर मन को विचलित करते हैं । नए-नए फैशन के प्रति आकर्षण के साथ अनैतिक दृश्य चोरी अपहरण, डकैती और बलात्कार, मार-धाड़ आदि के प्रसंग किशोर-मानस को रोमांचित करते हैं, जिनसे वे अपने अध्ययन में पूर्ण समर्पण नहीं कर पाते हैं ।
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