बिहारी बुधिया के नाम से मशहूर पवन के साथ एक काल्पनिक साक्षात्कार इस प्रकार होगा।
अनुपमा : बुधिया तुम्हारी शारीरिक कमी सब से है?
बुधिया : जब मेरी आयु केवल 5 वर्ष की थी तभी मुझे पोलियो हो गया था।
अनुपमा : क्या तुम्हें चलने में परेशानी नहीं होती?
बुधिया : परेशानी तो होती है, लेकिन पहले ज्यादा परेशानी होती थी अब मुझे इसकी आदत हो गई है।
अनुपमा : तुमने इतनी लंबी दौड़ करने का कैसे सोचा ?
बुधिया : मैं अपने जीवन में कुछ विशिष्ट करना चाहता था। मेरी शारीरिक कमी के कारण अक्सर मुझे निराशा होती थी, लेकिन मैंने सोचा कि कुछ ऐसा विशेष काम करूंगा, जिसमें मेरी शारीरिक कमी पीछे रह जाए।
बुधिया : तुम्हारा प्रेरणा स्रोत कौन है?
बुधिया : मेरी प्रेरणास्रोत वे सभी व्यक्ति हैं, जो अपने जीवन में किसी ना किसी शारीरिक कमी के होते हुए भी जीवन में सफलता के शिखर तक पहुंचे हैं।
अनुपमा : तुम्हारे जीवन में क्या सपना है ?
बुधिया : मैं एक समाजसेवी बनना चाहता हूँ और ऐसे लोगों को प्रेरणा देना चाहता हूँ, जो जीवन में किसी शारीरिक कमी से निराश होकर अपने जीवन से हार मान बैठते हैं। मैं एक ऐसी संस्था खोलना चाहता हूँ, जहाँ पर ऐसे व्यक्तियों को आगे बढ़ाने के लिए कुछ काम किया जाए।
अनुपमा : बहुत सुंदर विचार हैं। तुम्हारे सुखद भविष्य के लिए शुभकामनाएं।
बुधिया : धन्यवाद।
पाठ के बारे में…
इस पाठ में रघुवीर सहाय द्वारा रचित ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता प्रस्तुत की गई है। इस कविता के माध्यम से कवि ने शारीरिक चुनौती को खेलने वाले व्यक्ति की मनोदशा और उससे लाभ उठाने वाले दूरदर्शन कार्यक्रमों की आलोचना ही है। कवि का कहना है कि कैमरे के सामने शारीरिक अक्षमता झेल रहे व्यक्ति से कैसे-कैसे सवाल पूछे जाते हैं और कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए उसकी जैसी भाव-भंगिमा की अपेक्षा की जाती है, उससे अपाहिज व्यक्ति का कोई भला नहीं होता बल्कि उसे पीड़ा का ही सामना करना पड़ता है।
कवि ने यह बात बताने का प्रयास किया है ही शारीरिक चुनौती झेलने वाले लोगों के प्रति संवेदनशील नजरिया अपनाने की जगह लोग उनकी शारीरिक क्षमता से भी लाभ उठाने की कोशिश करते हैं और उनकी कमजोरी को दिखाकर कार्यक्रम बनाकर वाह-वाही तो बटोर लेते हैं, लेकिन यह एक प्रकार की क्रूरता है।रघुवीर सहाय हिंदी साहित्य के एक जाने-माने कवि रहे हैं, जिन्होंने अनेक मर्मस्पर्शी और संवेदनशील कविताओं की रचना की। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में सन 1929 में हुआ था। वे समकालीन हिंदी कविता के संवेदनशील नागर चेहरा माने जाते हैं। उन्होंने अपनी कविताओं में सड़क, चौराहा, अखबार, दफ्तर, संसद, रेल, बस और बाजार आदि की भाषा में कविताएं रखी है। उन्होंने सामान्य जीवन और घरवाले के चरित्रों पर कब्जा लिखकर अपनी इन्हीं अपनी चेतना का स्थाई पात्र बनाया।
उनकी प्रमुख रचनाओं में अज्ञेय द्वारा संपादित दूसरा सप्तक है, इसके अलावा उन्होंने आरंभिक कविताएं , चिड़ियों पर धूप में, आत्महत्या के विरुद्ध, हँसो-हँसो जल्दी हँसो जैसी कविताओं की रचना की एक प्रसिद्ध पत्रकार भी रहे और ऑल इंडिया रेडियो के लिए हिंदी समाचार विभाग से संबद्ध रहे। इसके अलावा वह नवभारत टाइम्स समाचार पत्र और दिनमान पत्रिका से भी संबद्ध थे। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। उनका निधन 1990 में दिल्ली में हुआ।
संदर्भ पाठ :
“कैमरे में बंद अपाहिज” – रघुवीर सहाय (कक्षा – 12, पाठ – 4, हिंदी, आरोह भाग-2)
इस पाठ के अन्य प्रश्न
सामाजिक उद्देश्य से युक्त ऐसे कार्यक्रम को देखकर आपको कैसा लगेगा? अपने विचार संक्षेप में लिखें।
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