कैमरे में बंद अपाहिज करुणा के मुखौटे में छिपी क्रूरता की कविता है- विचार कीजिए।

जी हाँ, ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ यह कविता करुणा के मुखोटे में छिपी क्रूरता की कविता है। कहने को तो इस कविता में वर्णित कार्यक्रम में संचालक अपंग व्यक्ति के प्रति करुणा और सहानुभूति का भाव प्रकट कर रहा है, लेकिन वास्तव में उसका उद्देश्य अपंग व्यक्ति के प्रति करुणा या भलाई का कोई भाव नही है। उसे तो केवल अपने कारोबारी हितों को साधना है। वह अपंग व्यक्ति को बुलाकर उसकी अपंगता बेचकर दर्शकों की सहानुभूति बटोरना चाहता है, जिससे उसका कार्यक्रम सफल होते और वह वाह-वाही बटोर सके।

संचालक को पीड़ित व्यक्ति की वास्तविक परेशानी से कोई लेना-देना नहीं, उसे तो केवल उसकी सारी क्षमता को दिखाकर लोगों की सहानुभूति बटोरने है और अपने कार्यक्रम को ऐसा दर्शाना है कि वह कोई बहुत बड़ा सामाजिक कार्यक्रम कर रहे हैं। वह केवल सहानुभूति और करुणा का कारोबार करते हैं।
दूरदर्शन पर अधिकतर कार्यक्रम ऐसे ही होते हैं जिनमें किसी ना किसी कमजोर वर्ग की कमजोरी को दिखाकर उनकी कमजोरी को बेचा जाता है और इससे संचालकों की जेब भरती हैस उस व्यक्ति का खुद का कुछ भला नहीं होता, जो वास्तव में पीड़ित है। इसलिए यह कविता भी करुणा का मुखौटे में छिपी क्रूरता की कविता है।

पाठ के बारे में…

इस पाठ में रघुवीर सहाय द्वारा रचित ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता प्रस्तुत की गई है। इस कविता के माध्यम से कवि ने शारीरिक चुनौती को खेलने वाले व्यक्ति की मनोदशा और उससे लाभ उठाने वाले दूरदर्शन कार्यक्रमों की आलोचना ही है। कवि का कहना है कि कैमरे के सामने शारीरिक अक्षमता झेल रहे व्यक्ति से कैसे-कैसे सवाल पूछे जाते हैं और कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए उसकी जैसी भाव-भंगिमा की अपेक्षा की जाती है, उससे अपाहिज व्यक्ति का कोई भला नहीं होता बल्कि उसे पीड़ा का ही सामना करना पड़ता है।

कवि ने यह बात बताने का प्रयास किया है ही शारीरिक चुनौती झेलने वाले लोगों के प्रति संवेदनशील नजरिया अपनाने की जगह लोग उनकी शारीरिक क्षमता से भी लाभ उठाने की कोशिश करते हैं और उनकी कमजोरी को दिखाकर कार्यक्रम बनाकर वाह-वाही तो बटोर लेते हैं, लेकिन यह एक प्रकार की क्रूरता है।रघुवीर सहाय हिंदी साहित्य के एक जाने-माने कवि रहे हैं, जिन्होंने अनेक मर्मस्पर्शी और संवेदनशील कविताओं की रचना की। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में सन 1929 में हुआ था। वे समकालीन हिंदी कविता के संवेदनशील नागर चेहरा माने जाते हैं। उन्होंने अपनी कविताओं में सड़क, चौराहा, अखबार, दफ्तर, संसद, रेल, बस और बाजार आदि की भाषा में कविताएं रखी है। उन्होंने सामान्य जीवन और घरवाले के चरित्रों पर कब्जा लिखकर अपनी इन्हीं अपनी चेतना का स्थाई पात्र बनाया।

उनकी प्रमुख रचनाओं में अज्ञेय द्वारा संपादित दूसरा सप्तक है, इसके अलावा उन्होंने आरंभिक कविताएं , चिड़ियों पर धूप में, आत्महत्या के विरुद्ध, हँसो-हँसो जल्दी हँसो जैसी कविताओं की रचना की एक प्रसिद्ध पत्रकार भी रहे और ऑल इंडिया रेडियो के लिए हिंदी समाचार विभाग से संबद्ध रहे। इसके अलावा वह नवभारत टाइम्स समाचार पत्र और दिनमान पत्रिका से भी संबद्ध थे। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। उनका निधन 1990 में दिल्ली में हुआ।

संदर्भ पाठ :

“कैमरे में बंद अपाहिज” – रघुवीर सहाय (कक्षा – 12, पाठ – 4, हिंदी, आरोह भाग-2)

 

 

इस पाठ के अन्य प्रश्न

कविता में कुछ पंक्तियाँ कोष्ठकों में रखी गई हैं- आपकी समझ से इसका क्या औचित्य है?

हम समर्थ शक्तिवान और हम एक दुर्बल को लाएँगे पंक्ति के माध्यम से कवि ने क्या व्यंग्य किया है?

 

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