कविता में कुछ पंक्तियाँ कोष्ठकों में रखी गई हैं- आपकी समझ से इसका क्या औचित्य है?

कविता में कुछ पंक्तियां पुस्तकों में दी गई हैं, यह पंक्तियां संचालक के लिए संकेत हैं, जो कि इस प्रकार हैं…
(कैमरा ऐसे दिखाओ बड़ा-बड़ा)
(वह अवसर खो देंगे)
(यह प्रश्न पूछा नहीं जाएगा)
(आशा है आप उसे अपनी अपंगता की पीड़ा मानेंगे)
(कैमरा बस करो)
(बस थोड़ी सी कसर रह गई)

हमारी समझ के अनुसार इन पंक्तियों का औचित्य बस इतना ही है कि यह कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए कार्यक्रम संचालक द्वारा असंवेदनशील प्रयास किया जा रहा है, जिसमें कार्यक्रम को बनाने वाले संचालकों के दोहरे रूप को उजागर किया गया है।

यह पंक्तियां यह स्पष्ट करती हैं कि जिस व्यक्ति को कार्यक्रम में बुलाया गया है, उससे संचालकों की इच्छा अनुसार बुलवाने का प्रयास किया जा रहा है और कार्यक्रम को इस तरह प्रस्तुत किया जा रहा है, जैसे वह व्यक्ति स्वयं अपनी इच्छा से ही सब कुछ बोल रहा है।

कार्यक्रम का उद्देश्य यह बताया गया है कि यह एक सामाजिक उद्देश्य का कार्यक्रम है, लेकिन वास्तव में यह कार्यक्रम असंवेदनशीलता पर आधारित है, जिसमें पहले से ही सब कुछ तय किया किया है, लेकिन दर्शकों को ऐसा दिखा जा रहा है कि जैसे ये सब कुछ सहज और स्वाभाविक रूप से हो रहा है।

पाठ के बारे में…

इस पाठ में रघुवीर सहाय द्वारा रचित ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता प्रस्तुत की गई है। इस कविता के माध्यम से कवि ने शारीरिक चुनौती को खेलने वाले व्यक्ति की मनोदशा और उससे लाभ उठाने वाले दूरदर्शन कार्यक्रमों की आलोचना ही है। कवि का कहना है कि कैमरे के सामने शारीरिक अक्षमता झेल रहे व्यक्ति से कैसे-कैसे सवाल पूछे जाते हैं और कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए उसकी जैसी भाव-भंगिमा की अपेक्षा की जाती है, उससे अपाहिज व्यक्ति का कोई भला नहीं होता बल्कि उसे पीड़ा का ही सामना करना पड़ता है।

कवि ने यह बात बताने का प्रयास किया है ही शारीरिक चुनौती झेलने वाले लोगों के प्रति संवेदनशील नजरिया अपनाने की जगह लोग उनकी शारीरिक क्षमता से भी लाभ उठाने की कोशिश करते हैं और उनकी कमजोरी को दिखाकर कार्यक्रम बनाकर वाह-वाही तो बटोर लेते हैं, लेकिन यह एक प्रकार की क्रूरता है।रघुवीर सहाय हिंदी साहित्य के एक जाने-माने कवि रहे हैं, जिन्होंने अनेक मर्मस्पर्शी और संवेदनशील कविताओं की रचना की। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में सन 1929 में हुआ था। वे समकालीन हिंदी कविता के संवेदनशील नागर चेहरा माने जाते हैं। उन्होंने अपनी कविताओं में सड़क, चौराहा, अखबार, दफ्तर, संसद, रेल, बस और बाजार आदि की भाषा में कविताएं रखी है। उन्होंने सामान्य जीवन और घरवाले के चरित्रों पर कब्जा लिखकर अपनी इन्हीं अपनी चेतना का स्थाई पात्र बनाया।

उनकी प्रमुख रचनाओं में अज्ञेय द्वारा संपादित दूसरा सप्तक है, इसके अलावा उन्होंने आरंभिक कविताएं , चिड़ियों पर धूप में, आत्महत्या के विरुद्ध, हँसो-हँसो जल्दी हँसो जैसी कविताओं की रचना की एक प्रसिद्ध पत्रकार भी रहे और ऑल इंडिया रेडियो के लिए हिंदी समाचार विभाग से संबद्ध रहे। इसके अलावा वह नवभारत टाइम्स समाचार पत्र और दिनमान पत्रिका से भी संबद्ध थे। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। उनका निधन 1990 में दिल्ली में हुआ।

संदर्भ पाठ :

“कैमरे में बंद अपाहिज” – रघुवीर सहाय (कक्षा – 12, पाठ – 4, हिंदी, आरोह भाग-2)

 

इस पाठ के अन्य प्रश्न

कैमरे में बंद अपाहिज करुणा के मुखौटे में छिपी क्रूरता की कविता है- विचार कीजिए।

हम समर्थ शक्तिवान और हम एक दुर्बल को लाएँगे पंक्ति के माध्यम से कवि ने क्या व्यंग्य किया है?

 

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