वे बताती हैं कि दरअसल कितनी भी बड़ी हो तोप
एक दिन तो होना ही है उसका मुँह बंद।
भाव : ‘तोप’ कविता की इन पंक्तियों के माध्यम से कवि वीरेन डंगवाल ने यह बताया है की भले ही एक ऐसा समय था, जब तोप बड़ा गरजा करती थी और अपने आतंक से अच्छे-अच्छों का मुँह बंद कर देती थी, लेकिन आज यह समय भी है जब स्वयं उसका मुँह बंद है और वह गरजने की जगह शांत पड़ी है, क्योंकि एक ना एक दिन ऐसा होना ही था।
कवि समय की परिवर्तनशीलता को बताते हुए कहता है कि बड़े से बड़ा शक्तिशाली व्यक्ति क्यों ना हो कितना भी कोई अत्याचारी क्यों ना हो, उसके अत्याचार का अंत एक ना एक दिन अवश्य होना है। तोप ने अपने-अपने समय में भले ही अनेक स्वाधीनता सेनानियों के जीवन को समाप्त किया था, उनका मुँह बंद किया था, लेकिन आज वह स्वयं दयनीय अवस्था में पड़ी हुई है। आज कोई उसको पूछने वाला नहीं है। आज उसका स्वयं का मुँह बंद है।
कोई भी कितना शक्तिशाली और अत्याचारी हो उसका अंत ऐसा ही होता है।
संदर्भ पाठ :
तोप : वीरेन डंगवाल (कक्षा – 10, पाठ – 7, हिंदी, स्पर्श भाग – 2)
इस पाठ के अन्य प्रश्न
कविता में तोप को दो बार चमकाने की बात की गई है। ये दो अवसर कौन-से होंगे?