मृदुल मोम सा घुल रे मृदु तन!
भाव इस प्रकार होगा :
इस पंक्ति के माध्यम से कवयित्री ने अपने समर्पण भाव को प्रदर्शित किया है। कवयित्री का कहना है कि इस कोमल तन को मोम की तरह एकदम भूल जाना होगा, तभी वो अपने प्रियतम यानि ईश्वर को पा सकेगी। कवयित्री के कहने का भाव है कि ईश्वर को पाना आसान नहीं है। ईश्वर को पाने के लिए कठोर तपस्या, कठोर साधना करनी पड़ेगी। ईश्वर के चरणों में अपना सब कुछ अर्पित कर देना होगा यानी स्वयं को मिटा देना होगा, मोम की तरह गला देना होगा, तब ही हम ईश्वर को पा सकते हैं।
पाठ के बारे मे…
इस पाठ में महादेवी वर्मा ही कविता ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल’ को प्रस्तुत किया गया है। इस कविता के माध्यम से कवयित्री अपने आप से जो अपेक्षाएं करती है, यदि वह पूरी हो जाए तो ना केवल उसका अपना भला होगा बल्कि हर आमजन का कितना भला हो सकता है, यह बताने का प्रयास कवयित्री ने किया है। कवयित्री के अनुसार हम सब भले ही अलग-अलग शरीर धारी हों, लेकिन हैं हम एक ही, जो हमें मनुष्य नाम की जाति के रूप में पहचान प्रदान करता है।
संदर्भ पाठ :
महादेवी वर्मा – मधुर-मधुर मेरे दीपक जल (कक्षा – 10 पाठ – 6, हिंदी, स्पर्श भाग-2)
इस पाठ के अन्य प्रश्न-उत्तर…
भाव स्पष्ट कीजिए- युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल, प्रियतम का पथ आलोकित कर!
भाव स्पष्ट कीजिए- दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित, तेरे जीवन का अणु गल गल!
पूरे पाठ के सभी प्रश्न उत्तर…
मधुर मधुर मेरे दीपक जल : महादेवी वर्मा (कक्षा-10 पाठ-6 हिंदी स्पर्श 2)