दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु गल गल!
भाव इस प्रकार होगा :
तेरे जीवन का अणु गल गल!इन पंक्तियों के माध्यम से कवयित्री ने दीपक को निरंतर जलते रहने का संदेश दिया है और कहा है कि वह अपने कण-कण को जला दे, गला दे और इस संसार को अपने प्रकाश से आलोकित कर दे। वह सागर की भांति स्वयं को विस्तृत रूप से फैला दें ताकि उसके प्रकाश के आलोक से संसार के सभी लोग उसका लाभ उठा सकें।
पाठ के बारे मे…
इस पाठ में महादेवी वर्मा ही कविता ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल’ को प्रस्तुत किया गया है। इस कविता के माध्यम से कवयित्री अपने आप से जो अपेक्षाएं करती है, यदि वह पूरी हो जाए तो ना केवल उसका अपना भला होगा बल्कि हर आमजन का कितना भला हो सकता है, यह बताने का प्रयास कवयित्री ने किया है। कवयित्री के अनुसार हम सब भले ही अलग-अलग शरीर धारी हों, लेकिन हैं हम एक ही, जो हमें मनुष्य नाम की जाति के रूप में पहचान प्रदान करता है।
संदर्भ पाठ :
महादेवी वर्मा – मधुर-मधुर मेरे दीपक जल (कक्षा – 10 पाठ – 6, हिंदी, स्पर्श भाग-2)
इस पाठ के अन्य प्रश्न-उत्तर…
पूरे पाठ के सभी प्रश्न उत्तर…
मधुर मधुर मेरे दीपक जल : महादेवी वर्मा (कक्षा-10 पाठ-6 हिंदी स्पर्श 2)