कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन से इसलिए प्रतीत हो रहे हैं क्योंकि कवयित्री को लगता है कि इन तारों में तेल समाप्त हो गया है, जिस कारण उनमें प्रकाश नहीं उत्पन्न हो रहा और यह तारे दया, प्रेम, करुणा, प्रेम जैसे भावों से रहित हैं, इसी कारण वे स्नेहहीन हो गए हैं।
कवयित्री ने आकाश के तारे संसार के मनुष्यों के प्रतीक बनाकर प्रयोग किए हैं। कवियत्री के अनुसार संसार के मनुष्यों में दया, प्रेम, करुणा, विनम्रता, सहानुभूति जैसे गुणों का अभाव हो गया है। इसी कारण उनमें स्नेह नही दिखता। इन तारों को यानि संसार के मनुष्यों को तेल मिल जाए यानी संसार के सभी मनुष्य प्रेम एवं सौहार्द की भावना से रहे तो उनके अंदर स्वतः ही स्नेह फूट पड़ेगा।
संदर्भ पाठ :
महादेवी वर्मा – मधुर-मधुर मेरे दीपक जल (कक्षा – 10 पाठ – 6, हिंदी, स्पर्श भाग-2)
इस पाठ के अन्य प्रश्न-उत्तर…
कवयित्री किसका पथ आलोकित करना चाह रही हैं?
पूरे पाठ के सभी प्रश्न उत्तर…
मधुर मधुर मेरे दीपक जल : महादेवी वर्मा (कक्षा-10 पाठ-6 हिंदी स्पर्श 2)