कवयित्री अपने प्रियतम को पाने वाला पथ आलोकित करना चाह रही हैं ताकि उसके प्रियतम यानि परमात्मा तक पहुंचने का उनका रास्ता सरल हो जाए।
कवयित्री अपनी आस्था एवं आत्मा रूपी दीपक को जलाकर अपने परमात्मा यानी प्रियतम का पथ आलोकित करना चाह रही हैं। अपने प्रियतम यानी परमात्मा को ही पाना उनका अंतिम लक्ष्य है और वह इस पथ को आलोकित करके निरंतर उस पथ पर चलते रहना चाहती है, ताकि वह अपने प्रियतम को पा सकें।
कवयित्री के कहने का भाव यह है कि उनके मन की अज्ञानता ही उनका मन का अंधकार है और वह इस अंधकार को मिटाकर देना चाहती हैं ताकि उनके अंदर ज्ञान का प्रकाश उत्पन्न हो। यह ज्ञान का प्रकाश ही ईश्वर को पाने का पथ है।
संदर्भ पाठ :
महादेवी वर्मा – मधुर-मधुर मेरे दीपक जल (कक्षा – 10 पाठ – 6, हिंदी, स्पर्श भाग-2)
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‘विश्व-शलभ’ दीपक के साथ क्यों जल जाना चाहता है?
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मधुर मधुर मेरे दीपक जल : महादेवी वर्मा (कक्षा-10 पाठ-6 हिंदी स्पर्श 2)