हमारी दृष्टि में ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल’ कविता का सौंदर्य शब्दों की आवृत्ति और सफल बिंब अंकन दोनों पर निर्भर है। जहाँ कवियत्री ने कविता में शब्दों की आवृत्ति से अद्भुत सौंदर्य बोध कराया है और कविता में जगह-जगह पर शब्दों की आवृत्ति कविता को विशिष्टता प्रदान कर रही है, वहीं कविता का सफल बिंबाकन भी कविता को एक अलग विशिष्टता प्रदान कर रहा है।
कवयित्री ने मधुर-मधुर, युग-युग, सिहर-सिहर, बिहँस-बिहँस जैसे शब्द युग्म के माध्यम से ‘पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार’ की छटा बिखेरी है।
कवयित्री ने इन पंक्तियों के माध्यम से बिंबों का सफल अंकन किया है।
‘मधुर मधुर मेरे दीपक जल
सौरभ फैला विपुल धूप बन
विश्व-शलभ सिर धुनता कह मैं,
जलते नभ में देख असंख्य
स्नेहनीत नित कितने दीपक
विद्युत बन ले घिरता है बादल
संदर्भ पाठ :
महादेवी वर्मा – मधुर-मधुर मेरे दीपक जल (कक्षा – 10 पाठ – 6, हिंदी, स्पर्श भाग-2)
इस पाठ के अन्य प्रश्न-उत्तर…
‘विश्व-शलभ’ दीपक के साथ क्यों जल जाना चाहता है?
दीपक से किस बात का आग्रह किया जा रहा है और क्यों?
पूरे पाठ के सभी प्रश्न उत्तर…
मधुर मधुर मेरे दीपक जल : महादेवी वर्मा (कक्षा-10 पाठ-6 हिंदी स्पर्श 2)