भाव स्पष्ट कीजिए − 1. है टूट पड़ा भू पर अंबर। 2. −यों जलद-यान में विचर-विचर था इंद्र खेलता इंद्रजाल। 3. गिरिवर के उर से उठ-उठ कर उच्चाकांक्षाओं से तरुवर हैं झांक रहे नीरव नभ पर अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।

भाव स्पष्ट कीजिए −
1. है टूट पड़ा भू पर अंबर।
2. −यों जलद-यान में विचर-विचर
     था इंद्र खेलता इंद्रजाल।
3. गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
    उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
    हैं झांक रहे नीरव नभ पर
   अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।

1. है टूट पड़ा भू पर अंबर।

भाव : इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने वर्षा के मूसलाधार स्वरूप का वर्णन किया है। पर्वत प्रदेश में पावस ऋतु में जब चारों तरफ काले-काले धने घनघोर बादल छा जाते हैं तो वह ऐसी घनघोर वर्षा करने लगते हैं कि ऐसा प्रतीत होता है कि आकाश धरती पर टूट पड़ा है।वर्षा इतनी मूसलाधार होती है कि ऐसा लगता है कि आकाश धरती तक आ गया है।

2. −यों जलद-यान में विचर-विचर
       था इंद्र खेलता इंद्रजाल।

भाव : इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने पावस ऋतु में पर्वत प्रदेश में प्रकृति के बदलते रूप का वर्णन किया है। वर्षा ऋतु में पर्वतीय प्रदेशों में बादल कितने घने हो जाते हैं और चारों तरफ ऐसा कहा जाता है कि पेड़-पौधे, पर्वत, झरने, तालाब आदि सब कोहरे से आच्छादित होकर अदृश्य हो जाते हैं और दिखाई नहीं देते। तालाबों से कोहरे के रूप में उठता हुआ ऐसे लगता है कि तालाबों में आग लग गई हो। शास के वृक्ष भी भयभीत होकर धरती में से हुए घँसे हुए नजर आते हैं। बादल और वर्षा के कारण और कोहरे के कारण शाल के वृक्ष बादलों के बीच ढंक जाते हैं और ऐसा लगता है कि वह धरती में धँस गए हो। बादल आकाश से उतरकर इतने नीचे आ जाते हैं कि वह पहाड़ के ऊपर उड़ते होते हुए प्रतीत होते हैं। इससे ऐसा आभास होता है कि पहाड़ भी बादलों के साथ उड़े रहे हैं। उड़ते हुए बादलों को देखकर ऐसा लगता है कि इन बादल रूपी वाहन में स्वयं इंद्र अपनी लीला को देखने निकले हैं।

3. गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
    उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
    हैं झांक रहे नीरव नभ पर
    अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।

भाव :  इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने पर्वतीय प्रदेशों में वर्षा ऋतु के समय सौंदर्य का वर्णन करते हुए वृक्षों की क्रियाओं का वर्णन किया है। कवि कहते हैं कि वर्षा ऋतु में वृक्ष पर्वत के हृदय से ऊपर उठकर आकाश की ओर देखते हुए ऐसे प्रतीत हो रहे हैं कि जैसे उनके मन में भी कोई उच्च आकांक्षा रही हो। वे आकाश की ओर स्थिर दृष्टि से देखते हैं। यह स्पष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं कि वह भी आकाश की ऊँचाइयों को छूना चाहते हैं।  वृक्ष आकाश की ऊँचाइयों को छू तो लेना चाहते हैं पर उनके मन में कुछ चिंता भी दिखाई दे रही है।
कवि ने यह स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है कि मनुष्य को अपने लक्ष्य की ओर स्थिर भाव ध्यान मग्न होकर उसी ओर निरंतर अग्रसर होना चाहिए।

पाठ के बारे में…

इस पाठ में सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित कविता पर ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ को प्रस्तुत किया गया है।
सुमित्रानंदन पंत प्रकृति के सुकुमार कवि कहे जाते हैं। उन्होंने प्रकृति के सुंदर मनोरम दृश्यों का जितनी सुंदरता से वर्णन किया है, वैसा और किसी कवि ने नहीं किया।

इस कविता में कवि ने ऐसे ही रोमांच और प्रकृति के सौंदर्य को अपनी आँखों से निरखने की अनुभूति को प्रकट किया है।सुमित्रानंदन पंत जो हिंदी साहित्य के छायावाद युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं, वह प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। उनका जन्म 20 मई को उत्तराखंड के कौसानी में हुआ था, जो कि अल्मोड़ा जिले में स्थित है। बचपन से उन्हें कविता में गहन रुचि थी और मात्र 7 वर्ष की आयु में ही कविता पाठ और सृजन आरंभ कर दिया था। उनकी अधिकतर कविता में प्रकृति-प्रेम और रहस्यवाद की स्पष्ट झलक दिखाई देती है। इसी कारण प्रकृति के सुकुमार कवि कहे गए हैं। उनका निधन 1977 में हुआ था।

संदर्भ पाठ :

सुमित्रानंदन पंत, ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ (कक्षा -10, पाठ – 5, हिंदी, स्पर्श, भाग -2)

 

इस पाठ के अन्य प्रश्न

झरने किसके गौरव का गान कर रहे हैं? बहते हुए झरने की तुलना किससे की गई है?

शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धँस गए?

 

इस पाठ के सभी प्रश्नों को एक साथ पाने के लिए इस लिंक पर जायें…

पर्वत प्रदेश में पावस : सुमित्रानंदन पंत (कक्षा-10 पाठ-5 हिंदी स्पर्श 2)

 

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