पाठ की किन पंक्तियों से सिद्ध होता है कि जाकिर साहब अत्यंत विनम्र थे?​


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पाठ की इन पंक्तियों से पता चलता है कि जाकिर साहब अत्यंत विनम्र थे।

“तीसरे राष्ट्रपति जाकिर हुसैन के पास बैठने पर ऐसी आत्मीयता का अनुभव होता था, जैसे हम रक्त-माँस से बने किसी अपने ही सगे के निकट बैठे हैं। इस आत्मीयता और विश्वास का एक कारण उनकी भाषा भी थी। हमें उनकी और अपनी भाषा में कोई फर्क नहीं लगता था। उनके साथ हम वही बोली बोलते थे जो घर में अपने स्वजनों के बीच सुनते थे।”

एक दूसरी पंक्ति से भी उनकी विनम्रता का पता चलता है…

उनकी विनम्रता ऐसी थी कि उन्होंने कहा था, “मैं स्वीकार करता हूं कि हमारी जनता ने इस उच्चतम पद के लिए निर्वाचित करके मुझ पर जो विश्वास प्रकट किया है, उससे मैं बहुत प्रभावित हुआ हूं। यह भावना इस वजह से और भी प्रबल हो जाती है कि भारत के महान सपूत डॉक्टर राधा कृष्णन के बाद मुझसे इस पद को संभालने के लिए कहा गया। मैं उनके कदमों पर चलने की कोशिश करूंगा लेकिन उनकी बराबरी कैसे कर सकूंगा।”

 

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