लेखक के अनुसार प्रत्यक्ष अनुभव की अनुभूति उनके लेखन में अधिक मदद इसलिए करती है, क्योंकि वह अपने सामने जो भी प्रत्यक्ष घटित होते हुए देखते हैं, उस की अनुभूति संवेदना और कल्पना को पूरी तरह अपने अंदर आत्मसात कर लेते हैं।
उनकी आँखों के आगे जो अनुभव नहीं आया होता है, उसकी तुलना में अनुभूति उनके हृदय के सारे भावों को बाहर निकालने में उनकी सहायता करती है। यह अंनुभूति यदि उनके हृदय में ना जगे तो उसके लिए लेखन करना संभव नहीं हो। ये अनुभूति उनके लिए उनके हृदय में उतर जाती है और वह लेखन करने के लिए प्रेरित होते हैं। इसी के कारण वे स्वयं को जानने की चेष्टा करते हैं, जिससे उन्हें लेखन कार्य के लिए विवश होना पड़ता है। इसीलिए लेखक अनुभव की जगह अनुभूति अधिक महत्व देते हैं।
पाठ के बारे में…
‘मैं क्यों लिखता हूँ’ पाठ ‘अज्ञेय’ द्वारा लिखा गया पाठ है, जिसके माध्यम से उन्होंने अपने लेखन अनुभव के बारे में वर्णन किया है। लेखक ने यह बताने की चेष्टा की है की वह लेखन कार्य क्यों करते हैं। उनके लेखन कार्य के क्या कारण है और लिखने से उन्हें कैसी अनुभूति होती है। कौन सी बातें हैं जो लेखक को लिखने के लिए प्रेरित करती हैं।
‘अज्ञेय’ जिनका पूरा नाम ‘सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय’ था। वह हिंदी साहित्य के जाने-माने लेखक रहे हैं। उनका जन्म 1911 में उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले कुशीनगर में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा दीक्षा जम्मू-कश्मीर और लाहौर में हुई थी। उन्होंने भारत के स्वाधीनता संग्राम में भी भाग लिया और इस कारण जेल भी गए। एक प्रसिद्ध साहित्यकार होने के साथ-साथ पत्रकार भी थे।
उनकी प्रमुख रचनाओं में चिंता, भग्नदूत, अरी ओ करुणा प्रभामय, इंद्रधनुष रौंदे हुए ये, आँगन के पार द्वार (काव्य संग्रह) शेखर : एक जीवनी, नदी के द्वीप (उपन्यास) अरे यायावर रहेगा याद (यात्रा वृतांत) आदि। उनका निधन 1987 में हुआ था।
संदर्भ पाठ :
“मैं क्यों लिखता हूँ?” अज्ञेय, (कक्षा – 10, पाठ – 4, हिंदी, कृतिका)
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