टुन्नू एवं दुलारी में प्रेम शारीरिक ना होकर उनकी कला पर आधारित प्रेम था। टुन्नू दुलारी से उसकी गायन प्रतिभा के कारण प्रेम करता था। दुलारी भी टुन्नू की काव्य प्रतिभा से प्रभावित थी। टुन्नू जहाँ 16-17 वर्ष का नवयुवक था। वही दुलारी एक परिपक्व मध्यम आयु की स्त्री थी।
दुलारी ने टुन्नू के प्रेम को कभी स्वीकार नहीं किया। लेकिन वह भी मन ही मन टुन्नू प्रेम करती थी। उसे पता था कि तनु का उसके प्रति प्रेम शारीरिक ना होकर कला पर आधारित प्रेम है। इसी कारण उसके मन में टून्नू के प्रति प्रेम एवं श्रद्धा के भाव उपज गए थे।
ऐसी स्थिति में जब दुलारी को टुन्नू की मृत्यु का समाचार प्राप्त हुआ जो उसके अंदर का टुन्नू के प्रति दबा हुआ प्रेम फूटकर बाहर निकल पड़ा और उसकी आँखों से आँसुओं की मोटी धार बह निकली। वह टुन्नू की मृत्यु से विचलित हो चुकी थी, इसीलिए उसने टुन्नू को श्रद्धांजलि देने के लिए उसके द्वारा दी गई खादी की धोती पहन ली और अंग्रेज विरोधी समारोह में गायन गाकर अपना विरोध प्रकट किया। इस तरह उसने प्रेम से देश-प्रेम का मार्ग चुन लिया था।
पाठ के बारे में…
‘एही तैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ यह पाठ ‘शिवप्रसाद मिश्र रूद्र’ द्वारा लिखा गया है। इस पाठ के माध्यम से लेखक ने भारत की स्वाधीनता संग्राम के समय समाज के ऐसे वर्ग के योगदान को उकेरा है, जो समाज में हीन व उपेक्षित वर्ग के रूप में जाना जाता था। भारत की स्वाधीनता की लड़ाई में समाज के हर धर्म और वर्ग के लोगों ने भाग लिया था। लेखक ने इस पाठ में समाज के ऐसे ही एक उपेक्षित वर्ग के लोगों के योगदान को बताया है।
शिवप्रसाद मिश्र रूद्र हिंदी साहित्य लेखक थे, जिनका जन्म 1911 में काशी में हुआ था। उन्होंने हरिशचंद्र कॉलेज, क्वीन्स कॉलेज और काशी हिंदू विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। उनका प्रमुख रचनाओं में बहती गंगा, सुचिताच (उपन्यास) ताल तलैया, गज़लिका, परीक्षा पच्चीसी (काव्य व गीत संग्रह) आदि के नाम प्रमुख हैं।
संदर्भ पाठ :
“एही तैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’”, लेखक – शिवप्रसाद मिश्र ‘रूद्र’ (कक्षा – 10, पाठ – 4, हिंदी, कृतिका)
हमारे अन्य प्रश्न उत्तर :
भारत के स्वाधीनता आंदोलन में दुलारी और टुन्नू ने अपना योगदान किस प्रकार दिया?
दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय कहाँ और किस रूप में हुआ?
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