भारत के स्वाधीनता आंदोलन में दुलारी और टुन्नू ने अपना योगदान अपने अपने स्तर से दिया था।
दुलारी ने स्वाधीनता आंदोलन में प्रत्यक्ष रूप से बात तो नहीं लिया लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से उसने आंदोलन में अपना योगदान दिया। उस समय महात्मा गाँधी के आह्वान के कारण विदेशी वस्तुओं को जलाया जा रहा था, इसलिए दुलारी ने अपना योगदान देते हुए अपने सारे विदेशी वस्त्र, रेशमी साड़ी आदि विदेशी वस्त्र की होली में झोंक दिये। इस तरह उसने अपने सारे विदेशी वस्त्र उतार दिए।
टुन्नू ने अपना योगदान स्वतंत्रता संग्राम के एक सिपाही की तरह दिया। उसने गायकों को द्वारा पहने जाने वाले रेशमी कुर्ता और टोपी की जगह पर सादा खादी वस्त्र पहने शुरू कर दिए। वह अंग्रेज विरोधी आंदोलन में सक्रिय रूप से निरंतर भाग लेता रहा। एक दिन उसने अपने आंदोलन में अपने प्राणों का बलिदान कर दिया
इस तरह दुलारी और टुन्नू ने आजादी के आंदोलन में अपना योगदान अलग-अलग तरीके से दिया।
पाठ के बारे में…
‘एही तैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ यह पाठ ‘शिवप्रसाद मिश्र रूद्र’ द्वारा लिखा गया है। इस पाठ के माध्यम से लेखक ने भारत की स्वाधीनता संग्राम के समय समाज के ऐसे वर्ग के योगदान को उकेरा है, जो समाज में हीन व उपेक्षित वर्ग के रूप में जाना जाता था। भारत की स्वाधीनता की लड़ाई में समाज के हर धर्म और वर्ग के लोगों ने भाग लिया था। लेखक ने इस पाठ में समाज के ऐसे ही एक उपेक्षित वर्ग के लोगों के योगदान को बताया है।
शिवप्रसाद मिश्र रूद्र हिंदी साहित्य लेखक थे, जिनका जन्म 1911 में काशी में हुआ था। उन्होंने हरिशचंद्र कॉलेज, क्वीन्स कॉलेज और काशी हिंदू विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। उनका प्रमुख रचनाओं में बहती गंगा, सुचिताच (उपन्यास) ताल तलैया, गज़लिका, परीक्षा पच्चीसी (काव्य व गीत संग्रह) आदि के नाम प्रमुख हैं।
संदर्भ पाठ :
“एही तैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’”, लेखक – शिवप्रसाद मिश्र ‘रूद्र’ (कक्षा – 10, पाठ – 4, हिंदी, कृतिका)
हमारे अन्य प्रश्न उत्तर :
दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय कहाँ और किस रूप में हुआ?
हमारी सहयोगी वेबसाइटें..