“तें सरबउला बोल ज़िन्नगी में कब देखते लोट?…!” दुलारी का टुन्नू को यह कहना बिल्कुल उचित था, क्योंकि टुन्नू उससे आयु में काफी छोटा था और उसकी आयु मात्र 16-17 वर्ष की ही थी, जबकि दुलारी एक परिपक्व स्त्री थी।
दुलारी एक अकेली स्त्री थी। उसके जीवन में कोई प्रेमी नहीं आया था। वह पुरुषों को दिल फेंक आशिक की तरह मानती थी, क्योंकि उसके जीवन में अधिकतर पुरुष ऐसे ही आए। सरदार फेंकू उन्हीं में से एक ऐसा ही पुरुष था। इसलिए दुलारी के मन में पुरुषों के प्रति अच्छे विचार नहीं थे।
इसीलिए दुलारी को टुन्नू को यह कहना बिल्कुल उचित था। इस कथन के माध्यम से युवा वर्ग के लिए यह संदेश छिपा है कि स्त्री को मात्र भोग की वस्तु नहीं समझना चाहिए और स्त्री का सम्मान करना चाहिए। स्त्री के सामने उन्हें बड़ी-बड़ी बातें नहीं करनी चाहिए। बड़ी-बड़ी बातें करने के चक्कर में वह फँस सकते हैं, इसलिए उन्हें अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही व्यवहार करना चाहिए।
पाठ के बारे में…
‘एही तैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ यह पाठ ‘शिवप्रसाद मिश्र रूद्र’ द्वारा लिखा गया है। इस पाठ के माध्यम से लेखक ने भारत की स्वाधीनता संग्राम के समय समाज के ऐसे वर्ग के योगदान को उकेरा है, जो समाज में हीन व उपेक्षित वर्ग के रूप में जाना जाता था। भारत की स्वाधीनता की लड़ाई में समाज के हर धर्म और वर्ग के लोगों ने भाग लिया था। लेखक ने इस पाठ में समाज के ऐसे ही एक उपेक्षित वर्ग के लोगों के योगदान को बताया है।
शिवप्रसाद मिश्र रूद्र हिंदी साहित्य लेखक थे, जिनका जन्म 1911 में काशी में हुआ था। उन्होंने हरिशचंद्र कॉलेज, क्वीन्स कॉलेज और काशी हिंदू विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। उनका प्रमुख रचनाओं में बहती गंगा, सुचिताच (उपन्यास) ताल तलैया, गज़लिका, परीक्षा पच्चीसी (काव्य व गीत संग्रह) आदि के नाम प्रमुख हैं।
संदर्भ पाठ :
“एही तैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’”, लेखक – शिवप्रसाद मिश्र ‘रूद्र’ (कक्षा – 10, पाठ – 4, हिंदी, कृतिका)
हमारे अन्य प्रश्न उत्तर :
दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय कहाँ और किस रूप में हुआ?
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