दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय कहाँ और किस रूप में हुआ?


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दुलारी से टुल्लू का परिचय तीज के अवसर पर आयोजित कजली दंगल एक समारोह में हुआ था, जो खोजवाँ बाजार में आयोजित किया गया था। दुलारी को वहाँ गायन के लिए बुलाया गया था। दुलारी को दुक्कड़ पर गाने वालियों के लिए विशेष तौर पर गायन के लिए बुलाया गया था। उसे पद्य में सवाल जवाब करने में महारत हासिल थी और इस विधा में उसके सामने बड़े-बड़े गायक ठहर नहीं पाते थे। यही कारण उसे उसके नाम के कारण बुलाया गया था।
इसी कजली दंगल में दुलारी की मुलाकात टुन्नू से हुई। जहाँ पर टुन्नू ने दुलारी को चुनौती देकर ललकारा और दुलारी ने भी उसकी चुनौती को स्वीकार किया। दुलारी मुक्त भाव से टुन्नू के गायन को सुनती रही। जहाँ टुन्नू दुलारी से प्रभावित हुआ, वहीं दुलारी भी टुन्नू से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी।

पाठ के बारे में…

‘एही तैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’  यह पाठ ‘शिवप्रसाद मिश्र रूद्र’ द्वारा लिखा गया है। इस पाठ के माध्यम से लेखक ने भारत की स्वाधीनता संग्राम के समय समाज के ऐसे वर्ग के योगदान को उकेरा है, जो समाज में हीन व उपेक्षित वर्ग के रूप में जाना जाता था। भारत की स्वाधीनता की लड़ाई में समाज के हर धर्म और वर्ग के लोगों ने भाग लिया था। लेखक ने इस पाठ में समाज के ऐसे ही एक उपेक्षित वर्ग के लोगों के योगदान को बताया है।
शिवप्रसाद मिश्र रूद्र हिंदी साहित्य लेखक थे, जिनका जन्म 1911 में काशी में हुआ था। उन्होंने हरिशचंद्र कॉलेज, क्वीन्स कॉलेज और काशी हिंदू विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। उनका प्रमुख रचनाओं में बहती गंगा, सुचिताच (उपन्यास) ताल तलैया, गज़लिका, परीक्षा पच्चीसी (काव्य व गीत संग्रह) आदि के नाम प्रमुख हैं।

संदर्भ पाठ :

“एही तैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’”, लेखक – शिवप्रसाद मिश्र ‘रूद्र’ (कक्षा – 10, पाठ – 4, हिंदी, कृतिका)

 

 

हमारे अन्य प्रश्न उत्तर :

दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक-सांस्कृतिक दायरे से बाहर है फिर भी अति विशिष्ट है। इस कथन को ध्यान में रखते हुए दुलारी की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।

कजली दंगल जैसी गतिविधियों का आयोजन क्यों हुआ करता होगा? कुछ और परंपरागत लोक आयोजनों का उल्लेख कीजिए।

 

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