स्वाधीनता संग्राम के समय कजली दंगल जैसी गतिविधियों का आयोजन स्पष्ट रूप से भारतीयों के मन में देशभक्ति की भावना का प्रचार करने के लिए किया जाता रहा होगा।
इसके अलावा कजली दंगल जैसी गतिविधियों का आयोजन उस समय मनोरंजन मात्र के लिए किया जाता था, क्योंकि वह ही मनोरंजन का एकमात्र साधन था। उस समय. तकनीक के आधुनिक साधन विकसित नहीं थे। भारत के लोक अंचलों में अलग-अलग सांस्कृतिक उत्सव, आयोजन आदि होते थे, जो मनोरंजन का साधन होते थे। कजली दंगल पूर्वी उत्तर प्रदेश में ऐसा ही एक आयोजन था। इसमें बड़ी मात्रा में भीड़ जुटी थी। कजली दंगल आयोजन में गायकों को बुलाकर गाने गवाए जाते थे और नृत्य होता था। यहाँ पर गायकों की अपनी अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगी होती थी और उनके बीच प्रतिस्पर्धा भी होती थी।
कजली दंगल जैसी गतिविधियों का आयोजन स्वतंत्रता के समय देशभक्ति की भावना का प्रचार करने के लिए किया जाता रहा होगा क्योंकि उस समय के ऐसे आयोजन में अक्सर सामाजिक बुराइयों जैसे नशा, भ्रूण हत्या, दहेज, बाल विवाह आदि से दूर रहने के लिए प्रेरित किया जाता था।
पाठ के बारे में…
‘एही तैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ यह पाठ ‘शिवप्रसाद मिश्र रूद्र’ द्वारा लिखा गया है। इस पाठ के माध्यम से लेखक ने भारत की स्वाधीनता संग्राम के समय समाज के ऐसे वर्ग के योगदान को उकेरा है, जो समाज में हीन व उपेक्षित वर्ग के रूप में जाना जाता था। भारत की स्वाधीनता की लड़ाई में समाज के हर धर्म और वर्ग के लोगों ने भाग लिया था। लेखक ने इस पाठ में समाज के ऐसे ही एक उपेक्षित वर्ग के लोगों के योगदान को बताया है।
शिवप्रसाद मिश्र रूद्र हिंदी साहित्य लेखक थे, जिनका जन्म 1911 में काशी में हुआ था। उन्होंने हरिशचंद्र कॉलेज, क्वीन्स कॉलेज और काशी हिंदू विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। उनका प्रमुख रचनाओं में बहती गंगा, सुचिताच (उपन्यास) ताल तलैया, गज़लिका, परीक्षा पच्चीसी (काव्य व गीत संग्रह) आदि के नाम प्रमुख हैं।
संदर्भ पाठ :
“एही तैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’”, लेखक – शिवप्रसाद मिश्र ‘रूद्र’ (कक्षा – 10, पाठ – 4, हिंदी, कृतिका)
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