कठोर हृदयी समझी जाने वाली दुलारी टुन्नू की मृत्यु पर क्यों विचलित हो उठी?


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कठोर हृदयी समझी जाने वाली दुलारी टुन्नू की मृत्यु पर विचलित इसलिए हो उठी क्योंकि वह भी टुन्नू से अंदर ही अंदर विशेष प्रेम करती थी। भले ही वह बाहर से दिखाने के लिए टुन्नू को डाँटती रहती थी, लेकिन उसके हृदय में टुन्ननू के लिए एक खास स्थान था। टुन्नू उससे प्रेम करता था, यह बात वो जानती थी। वह यह भी जानती थी कि टुन्नू उसके शरीर से नहीं बस बल्कि उसकी गायन कला से उसे प्रेम करता है। इसलिए वह अप्रत्यक्ष रूप से चुन्नू के प्रेम को स्वीकारती थी, लेकिन दिखाने के लिए वह टुन्नू को दुत्कार देती थी, क्योंकि टुन्नू उससे आयु में काफी छोटा था।
दुलारी का स्वभाव नारियल की तरह था। यानी वह बाहर से देखने में सख्त थी, लेकिन अंदर से उसका दिल बेहद नरम था। इसी कारण आजादी के आंदोलन में टुन्नू के बलिदान का समाचार पाकर वह विचलित हो उठी। टुन्नू के प्रति उसके अंदर दबा हुआ प्रेम फूट पड़ा। टुन्नू की मृत्यु का समाचार पाकर उसकी आँखों से आँसुओं की धार बह निकली। टुन्नू को श्रद्धांजलि प्रकट करने के लिए के उसने टुन्नू द्वारा पहले दी गई खादी की धोती पहन ली।

पाठ के बारे में…

‘एही तैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’  यह पाठ ‘शिवप्रसाद मिश्र रूद्र’ द्वारा लिखा गया है। इस पाठ के माध्यम से लेखक ने भारत की स्वाधीनता संग्राम के समय समाज के ऐसे वर्ग के योगदान को उकेरा है, जो समाज में हीन व उपेक्षित वर्ग के रूप में जाना जाता था। भारत की स्वाधीनता की लड़ाई में समाज के हर धर्म और वर्ग के लोगों ने भाग लिया था। लेखक ने इस पाठ में समाज के ऐसे ही एक उपेक्षित वर्ग के लोगों के योगदान को बताया है।
शिवप्रसाद मिश्र रूद्र हिंदी साहित्य लेखक थे, जिनका जन्म 1911 में काशी में हुआ था। उन्होंने हरिशचंद्र कॉलेज, क्वीन्स कॉलेज और काशी हिंदू विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। उनका प्रमुख रचनाओं में बहती गंगा, सुचिताच (उपन्यास) ताल तलैया, गज़लिका, परीक्षा पच्चीसी (काव्य व गीत संग्रह) आदि के नाम प्रमुख हैं।

संदर्भ पाठ :

“एही तैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’”, लेखक – शिवप्रसाद मिश्र ‘रूद्र’ (कक्षा – 10, पाठ – 4, हिंदी, कृतिका)

 

हमारे अन्य प्रश्न उत्तर :

हमारी आजादी की लड़ाई में समाज के उपेक्षित माने जाने वाले वर्ग का योगदान भी कम नहीं रहा है। इस कहानी में ऐसे लोगों के योगदान को लेखक ने किस प्रकार उभारा है?

दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक-सांस्कृतिक दायरे से बाहर है फिर भी अति विशिष्ट है। इस कथन को ध्यान में रखते हुए दुलारी की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।

 

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