सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है, यह उनकी सरकारी तंत्र की उस गुलामी भरी औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाती है, जिससे वे लोग अभी तक बाहर नहीं निकल पाए हैं।
यूँ तो कहने को भारत 1947 में आजाद हो गया था, लेकिन सरकारी तंत्र के बहुत से लोग जिनमें नेता, अफसर आदि शामिल थे, वह अभी भी उसी औपनिवेशिक गुलामी भरी मानसिकता में जी रहे थे। सरकारी तंत्र के लोग हीन भावना से ग्रस्त थे जो अंग्रेजों को अपने से ऊपर मानते थे। इसी मानसिकता के कारण ही वे जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर बेहद चिंतित और बदहवास हो गए। उन्होंने यह नहीं सोचा कि जिस जॉर्ज पंचम की नाक के लिए इतनी जद्दोजहद कर रहे हैं, उस जॉर्ज पंचम ने भारतीयों पर कितने अत्याचार किए थे। उनके यह सब कृत्य उनकी चाटुकारिता, अदूरदर्शिता, औपनिवेशिक मानसिकता आदि को प्रकट करते हैं।
पाठ के बारे में…
‘जॉर्ज पंचम की नाक’ पाठ ‘कमलेश्वर’ द्वारा लिखा गया एक व्यंग्यात्मक लेख है, जिसमें उन्होंने आजादी के बाद भारतीय नेताओं और नौकरशाही की उस गुलाम मानसिकता पर व्यंग्य किया है, जिससे वह आजादी के बाद भी बाहर नही निकल नहीं पाए हैं। वे इंग्लैंड की महारानी के भारत आगमन पर ऐसा आचरण करते हैं कि जैसे वह इंग्लैंड की महारानी नहीं भारत की हो।
आजादी से पहले इंग्लैंड की महारानी भले ही भारत की भी महारानी कहलाती थी, लेकिन भारत की आजादी के बाद वह भारत से उसका कोई संबंध नहीं रहा, लेकिन कुछ भारतीय नौकरशाह अभी भी उसी गुलामी की मानसिकता में जी रहे थे और इंग्लैंड की महारानी को आज भी भारत की महारानी समझते थे। लेखक ने ने इसी पर व्यंग कसा है।कमलेश्वर हिंदी साहित्य के महत्वपूर्ण लेखक रहे हैं, जो अपनी प्रासंगिक कहानी एवं उपन्यासों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अनेक कहानियां, उपन्यास, स्तंभ लेखन तथा फिल्मी पटकथायें लिखी थीं। वह एक जाने-माने पत्रकार भी रहे।
उनका जन्म 6 जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में हुआ था। कमलेश्वर द्वारा लिखें गया उपन्यासों में ‘कितने पाकिस्तान’ बेहद प्रसिद्ध रहा। उन्होंने अनेक उपन्यास, कहानियां आदि लिखे तथा अनेक पत्र-पत्रिकाओं में संपादक का भी कार्य किया। 27 जनवरी 2007 को उनका निधन हो गया।
संदर्भ पाठ :
जॉर्ज पंचम की नाक, कमलेश्वर, (कक्षा – 10, पाठ – 2, हिंदी, कृतिका भाग 2)
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