इस कहानी में माता-पिता काम बच्चे के प्रति भरपूर वात्सल्य व्यक्त हुआ है। भोला नाथ के पिता अपने पुत्र से बेहद स्नेह करते हैं। उनका दिन का आरंभ ही भोलानाथ के साथ शुरू होता था। वह उसे नहलाते-धुलाते थे और फिर अपने साथ पूजा करते समय अपने साथ बिठा लेते थे। भोलेनाथ के पिता अपने पुत्र को अपने साथ घुमाने ले जाते और जब उनका पुत्र बाल सुलभ क्रियाएं करता तो वह देखकर प्रसन्न होते। इस तरह वे हर पल अपने पुत्र से प्रेम एवं स्नेह प्रकट करते थे।
भोलानाथ की माता भी ममता से भरपूर माता थी। मैं तरह-तरह के स्वांग रचकर भोलानाथ को खाना खिलाया करती थी। जब भोलानाथ भोजन के प्रति रुचि दिखाता और भोजन करने से मना कर देता तो भोलानाथ को बहला-फुसलाकर तरह-तरह के स्वांग रचती और उसे बातों बातों में ही खाना खिला देती थी। भोलानाथ जब भी किसी बात से डर जाता था तो वह सीधे अपने माँ के आंचल में आकर दुबक जाता था। भोलानाथ को कष्ट में देखकर उसकी माँ भी रोने चिल्लाने लगती थी। इस तरह माता पिता पुत्र एवं माता पुत्र के बीच में बड़ा स्नेह था।
पाठ के बारे में…
‘माता का आँचल’ पाठ शिवपूजन सहाय द्वारा लिखा गया पाठ है, जिसमें उन्होंने भोलानाथ के बचपन के प्रसंग का वर्णन किया है। इस पाठ में भोलानाथ एक बच्चा है जिसका अपने पिता से बेहद लगाव था और वह हर समय अपने पिता के साथ ही रहता था। उसके पिता भी उसे हर समय अपने साथ रखते और उसे घुमाने ले जाते। उसे साथ बिठा कर पूजा करते, लेकिन जब भी कोई दुखद स्थिति आती तो वह अपने माँ के पास ही जाता था। माँ के आँचल की शरण ही लेता था। इसी कारण इस पाठ को ‘माता का आँचल’ भी कहा जाता है
शिवपूजन सहाय हिंदी के जाने-माने लेखक रहे हैं, जिन्होंने अनेक हिंदी कहानियों की रचना की। उनका जन्म अगस्त 1893 में बिहार के शाहाबाद में हुआ था। उनका निधन 21 जनवरी 1963 को पटना में हुआ। उन्होंने अनेक कथा एवं उपन्यासों की रचना की। उन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया।
संदर्भ पाठ :
माता का आँचल – शिवपूजन सहाय, (कक्षा – 10, पाठ – 1, कृतिका, भाग -2)
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