पाठ पढ़ते−पढ़ते आपको भी अपने माता−पिता का लाड़−प्यार याद आ रहा होगा। अपनी इन भावनाओं को डायरी में अंकित कीजिए।


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यह पाठ पढ़कर मुझे भी अपने बचपन की एक घटना याद आ गई। मैं अपने दोस्त के साथ एक दूसरे की तरह पत्थर उछालने का खेल खेल रहे थे। मैं दोस्त को पत्थर उछालता वह कैच कर लेता। दोस्त पत्थर उछालता मैं कैच कर लेता। एक बार अचानक पत्थर दोस्त के द्वारा उछाला गया पत्थर मैं सही से पकड़ नहीं पाया और वह पत्थर सीधे मेरे सर पर लगा। मेरा सर से खून निकलने लगा। यह देखकर मेरा दोस्त घबरा कर भाग गया। मैं रोते रोते घर आया तो मेरी माँ ने मुझे लाड़-प्यार से मेरा खून साफ किया और दवा लगाई। तब मुझे माँ का प्यार याद आ गया। पिताजी जब शाम को आए तब उन्होंने भी हाल-चाल पूछे और समझाया कि इस तरह के खेल मत खेला करो।

पाठ के बारे में…

‘माता का आँचल’ पाठ शिवपूजन सहाय द्वारा लिखा गया पाठ है, जिसमें उन्होंने भोलानाथ के बचपन के प्रसंग का वर्णन किया है। इस पाठ में भोलानाथ एक बच्चा है जिसका अपने पिता से बेहद लगाव था और वह हर समय अपने पिता के साथ ही रहता था। उसके पिता भी उसे हर समय अपने साथ रखते और उसे घुमाने ले जाते। उसे साथ बिठा कर पूजा करते, लेकिन जब भी कोई दुखद स्थिति आती तो वह अपने माँ के पास ही जाता था। माँ के आँचल की शरण ही लेता था। इसी कारण इस पाठ को ‘माता का आँचल’ भी कहा जाता है
शिवपूजन सहाय हिंदी के जाने-माने लेखक रहे हैं, जिन्होंने अनेक हिंदी कहानियों की रचना की। उनका जन्म अगस्त 1893 में बिहार के शाहाबाद में हुआ था। उनका निधन 21 जनवरी 1963 को पटना में हुआ। उन्होंने अनेक कथा एवं उपन्यासों की रचना की। उन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया।

संदर्भ पाठ :

माता का आँचल – शिवपूजन सहाय, (कक्षा – 10, पाठ – 1, कृतिका, भाग -2)

 

हमारे अन्य प्रश्न उत्तर :

इस उपन्यास अंश में तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति का चित्रण है। आज की ग्रामीण संस्कृति में आपको किस तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं।

पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को छू गए हों?

 

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