इस उपन्यास में 30 के दशक की ग्रामीण संस्कृति का चित्रण किया गया है। तीस के दशक की ग्रामीण संस्कृति और आज की संस्कृति में काफी कुछ परिवर्तन आ चुका है। तीस के दशक के आसपास की ग्रामीण संस्कृति में बनावटी पर नहीं था। उस समय के लोग सादा जीवन व्यतीत करते थे। प्रदूषण का नामोनिशान नहीं था।
गाँव के खेत हरे-भरे होते थे। गाँव में घर कच्ची मिट्टी के बने होते थे। बहुत अधिक सुख-सुविधाएं नहीं होती थी, लेकिन फिर भी लोग खुश थे और सुकून से रहते थे। गाँव में संयुक्त परिवार होते थे, जो भरे पूरे होते थे और सब लोग मिल जुल कर रहते थे।
आज के गाँव बिल्कुल बदल चुके हैं, अब मिट्टी के घर यदा-कदा ही पाए जाते हैं। अब ज्यादातर गाँव के घरों में पक्के मकान हो गए हैं। गाँव में भी तकनीक एवं संचार का प्रभाव होने लगा है। पहले के गाँव जहाँ लालटेन की रोशनी से जगमगाती थे, आज के गाँव में बिजली पहुंच चुकी है। पहले खेतों में बैल होते थे। अब आज के गाँव में खेतों में ट्रैक्टर होते हैं। घरेलू खाद की जगह रसायनिक खाद का प्रयोग होता है। पहले के किसान खुद ही खेती करते थे अब के किसान मजदूरों से खेती करवाते हैं। पहले के गाँव के लोग सीधा सादा जीवन बिताते थे आज के ग्रामीण लोग भी शहरों की बातें आधुनिकता की चकाचौंध में फंस गए हैं।
पाठ के बारे में…
‘माता का आँचल’ पाठ शिवपूजन सहाय द्वारा लिखा गया पाठ है, जिसमें उन्होंने भोलानाथ के बचपन के प्रसंग का वर्णन किया है। इस पाठ में भोलानाथ एक बच्चा है जिसका अपने पिता से बेहद लगाव था और वह हर समय अपने पिता के साथ ही रहता था। उसके पिता भी उसे हर समय अपने साथ रखते और उसे घुमाने ले जाते। उसे साथ बिठा कर पूजा करते, लेकिन जब भी कोई दुखद स्थिति आती तो वह अपने माँ के पास ही जाता था। माँ के आँचल की शरण ही लेता था। इसी कारण इस पाठ को ‘माता का आँचल’ भी कहा जाता है
शिवपूजन सहाय हिंदी के जाने-माने लेखक रहे हैं, जिन्होंने अनेक हिंदी कहानियों की रचना की। उनका जन्म अगस्त 1893 में बिहार के शाहाबाद में हुआ था। उनका निधन 21 जनवरी 1963 को पटना में हुआ। उन्होंने अनेक कथा एवं उपन्यासों की रचना की। उन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया।
संदर्भ पाठ :
माता का आँचल – शिवपूजन सहाय, (कक्षा – 10, पाठ – 1, कृतिका, भाग -2)
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