पाठ में ऐसे प्रसंग जो हमारे दिल को छू गए हैं, वह इस प्रकार हैं, पहला प्रश्न तब का है, जब भोलानाथ के पिता रामायण का पाठ कर रहे थे और भोलानाथ शीशे में अपनी शक्ल देख कर खुश होता है। जब वह देखता है कि पिता रामायण का पाठ छोड़कर उसी देख रहे हैं जो वह शर्मा कर शीशा अलग रख देता है। इस तरह इस प्रश्न में बच्चे की जिज्ञासा और सरल सहज लज्जा का सुंदर वर्णन किया गया है।
दूसरा प्रसंग उस समय का है, जब भोलानाथ और उसके साथी बारात का स्वांग रखते हैं और दुल्हन को लिवा लाने तथा पिता द्वारा दुल्हन का घूंघट उठाने पर सब बच्चे भाग जाते हैं। ये बच्चों की स्वाभाविक चंचचला को प्रकट करता था। इस प्रसंग से बच्चों का समाज सामाजिक परंपराओं के प्रति रुझान प्रकट होता है जो वह अपने स्वांग एवं नाटकीयता के माध्यम से नकल करने की कोशिश करते हैं।
तीसरे प्रसंग में बच्चे आपने पिता के साथ कुश्ती लड़ता है और जब अपने बच्चे को प्रोत्साहित करने के लिए जानबूझकर पछाड़ खाकर गिर जाता है। तब बच्चा अपने पिता की मूंछ खींचने लगता है और पिता इस बात से खुश होता है। पिता पुत्र के प्रेम का बड़ा ही अद्भुत प्रसंग है।
चौथे प्रसंग में भोलानाथ जब अपनी माँ के आँचल में छुप जाता है और उसकी माँ चिंता करते हुए उसे हल्दी लगाती है। तब माँ और बेटे के बीच की ममतामई दृश्य इस पाठ के शीर्षक की सार्थकता को सिद्ध कर देते हैं।
पाठ के बारे में…
‘माता का आँचल’ पाठ शिवपूजन सहाय द्वारा लिखा गया पाठ है, जिसमें उन्होंने भोलानाथ के बचपन के प्रसंग का वर्णन किया है। इस पाठ में भोलानाथ एक बच्चा है जिसका अपने पिता से बेहद लगाव था और वह हर समय अपने पिता के साथ ही रहता था। उसके पिता भी उसे हर समय अपने साथ रखते और उसे घुमाने ले जाते। उसे साथ बिठा कर पूजा करते, लेकिन जब भी कोई दुखद स्थिति आती तो वह अपने माँ के पास ही जाता था। माँ के आँचल की शरण ही लेता था। इसी कारण इस पाठ को ‘माता का आँचल’ भी कहा जाता है
शिवपूजन सहाय हिंदी के जाने-माने लेखक रहे हैं, जिन्होंने अनेक हिंदी कहानियों की रचना की। उनका जन्म अगस्त 1893 में बिहार के शाहाबाद में हुआ था। उनका निधन 21 जनवरी 1963 को पटना में हुआ। उन्होंने अनेक कथा एवं उपन्यासों की रचना की। उन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया।
संदर्भ पाठ :
माता का आँचल – शिवपूजन सहाय, (कक्षा – 10, पाठ – 1, कृतिका, भाग -2)
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