निम्नलिखित का आशय स्पष्ट इस प्रकार होगा
(क) एकसरि भवन पिआ बिनु रे मोहि रहलो न जाए।
सखि अनकर दुख दारुन रे जग के पतिआए।
आशय : इन पंक्तियों से कवि का आशय यह है कि वह यह स्पष्ट करना चाह रहा है कि नायिका का प्रेमी परदेश किसी कार्य के लिए गया है और नायिका अपने घर में अकेली है। पति के वियोग में तड़प रही नायिका हर पल दुखी रहती है। पति का वियोग उसे इतना परेशान कर रहा है कि वह सुकून से नहीं रह पा रही है। अपने दिल की परेशानी को वह अपनी सखी को बताती हुई कहती है कि उसके पति की अनुपस्थिति और वियोग उसे बहुत कष्ट प्रदान कर रहा है। क्या इस संसार में कोई ऐसा है, जो उसके दुखों को समझ पाए। नायिका के कहने का भाव यह है कि कोई भी व्यक्ति संसार में किसी दूसरे के दुख की गहराई को नहीं समझ सकता।
(ख) जनम अवधि हम रूप निहारल नयन न तिरपित भेल।।
सेहो मधुर बोल स्रवनहि सूनल स्रुति पथ परस न गेल।।
आशय : इस पंक्ति का आशय यह है कि कलि नायिका के मन की अतृप्त स्थिति का वर्णन कर रहा है। नायिका का मन अपने प्रेमी को बार-बार देखने के बाद भी नही भरता है। नायिका का प्रेम बहुत पुराना हो चुका है, लेकिन अपने प्रियतम के सुंदर मनोहारी रूप के दर्शन करके नायिका के मन को तृप्ति नहीं मिल पा रही। वह अपने प्रियतम को हर समय हर पल निहारते रहना चाहती है। उसका प्रियतम का मनोहारी रूप इतना सुंदर और पल-पल बदलने वाला है कि नायिका का मन बार-बार अपने प्रियतम को देखते रहने को करता है, फिर भी उसके नेत्र अतृप्त रह जाते हैं। नायिका के अपने प्रियतम के स्वर भी नायिका लंबे समय से सुनती आ रही है लेकिन फिर भी उसके स्वर उसे नये प्रतीत होते हैं।
नायिका के कहने का भाव यह है कि भले ही उसका प्रेम कितना भी अधिक पुराना हो गया हो, लेकिन उसमें नित्य नवीनता का समावेश होता जा रहा है। इसी नवीनता के कारण वह पूरी तरह तृप्त नहीं हो पा रही। उसे बार-बार अपने प्रियतम के देखते रहने और उससे बातें करने का मन करता है।
(ग) कुसुमित कानन हेरि कमलमुखि, मूदि रहए दु नयान।
कोकिल-कलरव, मधुकर-धुनि सुनि, कर देइ झाँपइ कान।।
आशय : इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने नायिका के ह्रदय की मनोदशा का चित्रण किया है। चूँकि नायिका विययोग की अवस्था में है इसलिए उसे प्रकृति का मनमोहक वातावरण भी भा नहीं रहा है। आसपास का प्राकृतिक वातावरण भी उसे सुहाना नहीं लग रहा है बल्कि वह संयोग कालीन होकर भी उसे कष्ट प्रदान कर रहा है।
उसका प्रियतम उसे छोड़कर परदेश गया हुआ है। नायिका प्रियतम के वियोग की विरह रूपी अग्नि में जल रही है। वसंत ऋतु के कारण आसपास का वातावरण मनमोहक हो गया है। लेकिन कोयल के स्वर कूक रहे हैं। भंवरे की गुंजन सुनाई दे रही है लेकिन यह सभी बातें ही नायिका को अच्छी नहीं लग रहीं। सब को सुनकर देख सुनकर नायिका को अपने प्रियतम की याद सता रही है और उसकी विरह रूपी अग्नि और अधिक भड़क जाती है। इसी कारण वह अपने कानों को बंद कर देती है ताकि इन सबको सुनरक उसे अपने प्रियतम की याद नहीं आए।
पाठ के बारे में…
इस पाठ में कवि विद्यापति के 3 पद प्रस्तुत किए गए हैं।
पहले पद में नायिका जोकि विरहिणी के रूप में है, उसके हृदय के उद्गारों को प्रकट किया गया है। दूसरे पद में प्रियतमा रूपी नायिका अपनी सखी से अपने प्रियतम के विषय में बातचीत कर रही है। तीसरे पद में विरहिणी रूपी प्रियतमा यानी नायिका का दुख भरा चित्रण प्रस्तुत किया गया है जो अपने प्रियतम के वियोग में तड़प रही है।
विद्यापति हिंदी साहित्य के चौदहवीं एवं पंद्रहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध कवि रहे हैं। वह आदिकाल और भक्तिकाल के संधि कवि कहे जाते हैं। उनका जन्म बिहार के मधुबनी के बिस्पी गाँव में सन् 1380 ईस्वी में हुआ था। बिहार के मिथिला क्षेत्र के लोक अंचलों में वह बेहद प्रसिद्ध कवि रहे हैं और उनके पदों को बड़ी तन्मयता से गाया जाता रहा है। उनकी महत्वपूर्ण कृतियों में कीर्तिलता, कीर्तिपताका, भू-परिक्रमा, पुरुष समीक्षा, लिखनावली और पदावली के नाम प्रमुख हैं। उनका निधन 1460 ईस्वी में हुआ।
संदर्भ पाठ :
विद्यापति – पद, (कक्षा – 12, पाठ – 9, हिंदी, अंतरा)
हमारे अन्य प्रश्न उत्तर :
कातर दृष्टि से चारों तरफ़ प्रियतम को ढूँढ़ने की मनोदशा को कवि ने किन शब्दों में व्यक्त किया है?
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