कातर दृष्टि से चारों तरफ़ प्रियतम को ढूँढ़ने की मनोदशा को कवि ने किन शब्दों में व्यक्त किया है?


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कातर दृष्टि से अपने प्रियतम को चारों ओर ढूढने की मनोदशा को कवि ने इन पंक्तियों के माध्यम से व्यक्त किया है

कातर दिठि करि, चौदिस हेरि-हेरि
नयन गरए जल धारा।

इन पंक्तियों के माध्यम से कवि का आशय यह है कि जिस प्रकार कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी बेहद क्षीण होती जाती है, उसी तरह नायिका का शरीर भी अपने प्रियतम की याद में बेहद क्षीण यानी कमजोर होता जा रहा है।
अपने प्रियतम के वियोग में तड़प रही नायिका की आँखों से हर समय आँसू बहते रहते हैं। वो हर पल अपने प्रियतम की याद में रोती रहती है। इसी कारण वह हर जगह अपने प्रियतम को ढूंढती रहती है। उसकी कातर निगाहें जिधर देखो उधर अपने प्रियतम को ढूंढने का प्रयास करती हैं। उसे उम्मीद है कि शायद उसके प्रियतम की एक झलक उसे कहीं देखने को मिल जाए और वह अपनी मन को तृप्ति दे सके, उसके मन को शांति मिले।

पाठ के बारे में…

इस पाठ में कवि विद्यापति के 3 पद प्रस्तुत किए गए हैं।
पहले पद में नायिका जोकि विरहिणी के रूप में है, उसके हृदय के उद्गारों को प्रकट किया गया है। दूसरे पद में प्रियतमा रूपी नायिका अपनी सखी से अपने प्रियतम के विषय में बातचीत कर रही है। तीसरे पद में विरहिणी रूपी प्रियतमा यानी नायिका का दुख भरा चित्रण प्रस्तुत किया गया है जो अपने प्रियतम के वियोग में तड़प रही है।
विद्यापति हिंदी साहित्य के चौदहवीं एवं पंद्रहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध कवि रहे हैं। वह आदिकाल और भक्तिकाल के संधि कवि कहे जाते हैं। उनका जन्म बिहार के मधुबनी के बिस्पी गाँव में सन् 1380 ईस्वी में हुआ था। बिहार के मिथिला क्षेत्र के लोक अंचलों में वह बेहद प्रसिद्ध कवि रहे हैं और उनके पदों को बड़ी तन्मयता से गाया जाता रहा है। उनकी महत्वपूर्ण कृतियों में कीर्तिलता, कीर्तिपताका, भू-परिक्रमा, पुरुष समीक्षा, लिखनावली और पदावली के नाम प्रमुख हैं। उनका निधन 1460 ईस्वी में हुआ।

संदर्भ पाठ :

विद्यापति – पद, (कक्षा – 12, पाठ – 9, हिंदी, अंतरा)

 

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