कोयल और भंवरे के कलरव का नायिका पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ रहा है। कहने को तो कोयल का स्वर्ग बेहद मधुर होता है और भंवरे की गुंजन कानों को अच्छी लगती है, लेकिन कोयल और भंवरे के यह कलरव अब न्याय को और अधिक कष्ट प्रदान कर रहे हैं, क्योंकि कोयल का मधुर स्वर और भंवरे की गुंजन सुनकर नायिका को अपने प्रियतम की याद आ रही है, जोकि परदेश गया हुआ है। इस कारण नायिका की विरह रूपी अग्नि और अधिक भड़क जाती है, जिससे उसे अधिक कष्ट होने लगता है।
नायिका अपने कानों पर हाथ रख लेती है ताकि उसे कोयल का मधुर स्वर और भंवरे की गुंजन सुनाई ना दे, क्योंकि इन दोनों की यह स्वर उसे मधुरता की जगह कष्ट प्रदान कर रहे हैं और उसे उसके प्रियतम की याद दिला कर उसकी विरह अग्नि को भड़का रहे हैं।
पाठ के बारे में…
इस पाठ में कवि विद्यापति के 3 पद प्रस्तुत किए गए हैं।
पहले पद में नायिका जोकि विरहिणी के रूप में है, उसके हृदय के उद्गारों को प्रकट किया गया है। दूसरे पद में प्रियतमा रूपी नायिका अपनी सखी से अपने प्रियतम के विषय में बातचीत कर रही है। तीसरे पद में विरहिणी रूपी प्रियतमा यानी नायिका का दुख भरा चित्रण प्रस्तुत किया गया है जो अपने प्रियतम के वियोग में तड़प रही है।
विद्यापति हिंदी साहित्य के चौदहवीं एवं पंद्रहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध कवि रहे हैं। वह आदिकाल और भक्तिकाल के संधि कवि कहे जाते हैं। उनका जन्म बिहार के मधुबनी के बिस्पी गाँव में सन् 1380 ईस्वी में हुआ था। बिहार के मिथिला क्षेत्र के लोक अंचलों में वह बेहद प्रसिद्ध कवि रहे हैं और उनके पदों को बड़ी तन्मयता से गाया जाता रहा है। उनकी महत्वपूर्ण कृतियों में कीर्तिलता, कीर्तिपताका, भू-परिक्रमा, पुरुष समीक्षा, लिखनावली और पदावली के नाम प्रमुख हैं। उनका निधन 1460 ईस्वी में हुआ।
संदर्भ पाठ :
विद्यापति – पद, (कक्षा – 12, पाठ – 9, हिंदी, अंतरा)
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‘सेह फिरत अनुराग बखानिअ तिल-तिल नूतन होए’ से लेखक का क्या आशय है?
नायिका के प्राण तृप्त न हो पाने के कारण अपने शब्दों में लिखिए।
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