प्रियतमा के दुख के क्या कारण हैं?


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विद्यापति के पद वर्णित प्रियतमा के दुख के निम्नलिखित कारण हैं…

  • प्रियतमा का प्रियतम यानी उसका पति किसी कार्य के लिए परदेश गया हुआ है। प्रियतमा अपने पति से मिलन को पीड़ित है, लेकिन पति की अनुपस्थिति के कारण उसे बेहद पीड़ा हो रही है।
  • प्रियतमा अपने घर में अकेली है और पति की अनुपस्थिति में अकेला घर उसे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा।
  • सावन का मास शुरु हो गया है। सावन के महीने में प्रियतमा के मन में प्रियतम से मिलन का भाव उत्पन्न हो रहा है और वर्षा का आगमन भी उसे उद्वेलित कर गहन दुख दे रहा है, क्योंकि उसका प्रियतम उसके पास नहीं है।
  • प्रियतमा का प्रियतम परदेश जाकर अपनी प्रिया को भूल गया है। ये भी प्रियतमा के दुख का यह कारण है।

पाठ के बारे में…

इस पाठ में कवि विद्यापति के 3 पद प्रस्तुत किए गए हैं।
पहले पद में नायिका जोकि विरहिणी के रूप में है, उसके हृदय के उद्गारों को प्रकट किया गया है। दूसरे पद में प्रियतमा रूपी नायिका अपनी सखी से अपने प्रियतम के विषय में बातचीत कर रही है। तीसरे पद में विरहिणी रूपी प्रियतमा यानी नायिका का दुख भरा चित्रण प्रस्तुत किया गया है जो अपने प्रियतम के वियोग में तड़प रही है।
विद्यापति हिंदी साहित्य के चौदहवीं एवं पंद्रहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध कवि रहे हैं। वह आदिकाल और भक्तिकाल के संधि कवि कहे जाते हैं। उनका जन्म बिहार के मधुबनी के बिस्पी गाँव में सन् 1380 ईस्वी में हुआ था। बिहार के मिथिला क्षेत्र के लोक अंचलों में वह बेहद प्रसिद्ध कवि रहे हैं और उनके पदों को बड़ी तन्मयता से गाया जाता रहा है। उनकी महत्वपूर्ण कृतियों में कीर्तिलता, कीर्तिपताका, भू-परिक्रमा, पुरुष समीक्षा, लिखनावली और पदावली के नाम प्रमुख हैं। उनका निधन 1460 ईस्वी में हुआ।

संदर्भ पाठ :

विद्यापति – पद, (कक्षा – 12, पाठ – 9, हिंदी, अंतरा)

 

हमारे अन्य प्रश्न उत्तर :

कवि ‘नयन न तिरपित भेल’ के माध्यम से विरहिणी नायिका की किस मनोदशा को व्यक्त करना चाहता है?

नायिका के प्राण तृप्त न हो पाने के कारण अपने शब्दों में लिखिए।

 

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